भगत सिंह ने अंग्रेज़ों की असेम्ब्ली में धमाका करके खुद को पुलिस को सौंप दिया। कोई ज़रूरी नहीं था खुद को पुलिस को सौंपना, पहले कितनी ही बार आसानी से पुलिस को चकमा दे चुके थे। फिर क्यों इस बार स्वेच्छा से फाँसी के फंदे को चुन लिया उन्होंने?
उनसे पूछा गया तो बोले - मैं मर इसलिए रहा हूँ क्योंकि मेरे मरने से ही ये बात जन-जन तक पहुँच पाएगी। अगर मैं ज़िंदा रहा तो कुछ ही लोगों पर मेरा असर पड़ेगा, पर यदि मैं शहीद हो गया तो मेरे संदेश का प्रचार करोड़ों लोगों तक हो जाएगा। इसलिए फाँसी चुनना ज़रूरी है।
इतना बड़ा होता है सामाजिक काम में प्रचार का महत्व। आपकी संस्था भी अपना 80-90% समय, ऊर्जा, और संसाधन सामाजिक-आध्यात्मिक क्रांति के प्रचार में ही लगाती है। आचार्य जी सदा कहते हैं कि झूठ अपनेआप फैलता है पर सच को पालना-पोसना और प्रचारित करना पड़ता है।
आचार्य जी ताक़त और मुक्ति देने वाले सत्य को बोलते जा रहे हैं। पर बोलना एक बात है और उस बात को सब तक पहुँचाना बिल्कुल दूसरी बात।
जैसा हमने कहा कि हमारे 80-90% संसाधन प्रचार के काम में ही खर्च होते हैं। इस हद तक कि संस्था के लोग अपनी साधारण तनख़्वायें भी काट-काट के प्रचार कार्य को आगे बढ़ाते हैं। अपनी व्यक्तिगत ज़रूरतों और परिवार की माँगों को पीछे रखकर हम बस एक ही लक्ष्य रखते हैं: आचार्य जी की आवाज़ अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचनी चाहिए।
भगत सिंह बहुत ऊँचे थे। उनकी तरह हम क्रांति के प्रचार के लिए जान तो नहीं दे पा रहे हैं लेकिन इतना ज़रूर है कि ज़िंदगी हमने सत्य के प्रचार-प्रसार के नाम कर दी है। झूठ, कमज़ोरी और दुःख बहुत फैल गए हैं— इनको हारना ही चाहिए। यही हमारा मिशन है।
जिस तरह से हमने सच को आप तक पहुँचाया है, क्या आप सच को सब तक पहुँचने में सहयोग देना चाहेंगे? एक व्यक्ति तक एक बार आचार्य जी की बात पहुँचाने में न्यूनतम 25 रुपए लगते हैं और करोड़ों-अरबों लोगों तक उनकी बात पहुँचानी ज़रूरी है।
साफ बात है—हमें संसाधनों की ज़रूरत है। मात्र भारत देश के ही लोगों तक पहुँचने हेतु ही सैकड़ों करोड़ रुपए की राशि चाहिए।
हम आम लोग हैं। शायद भगत सिंह की तरह जान नहीं दे सकते, शायद क्रांति को हम पूरा जीवन भी समर्पित नहीं कर सकते। लेकिन इतना तो कर ही सकते हैं कि दिल खोल कर सच के प्रचार को संसाधन दें।
कर सकते हैं न?
ये काम आपके लिए है, और इसमें हमें आपका समर्थन चाहिए। कृपया आर्थिक योगदान करें।
क्या आप जानते हैं आचार्य प्रशांत ने श्रीमद्भगवद्गीता पर पहला सत्र 2006 में किया था? आज से 15 साल पहले। और तब से आचार्य जी लगातार संवाद करे ही जा रहे हैं, इतना कि 100 किताबें छप चुकी हैं, और लगभग 300 और किताबें छपने की सामग्री तैयार है।
2006 से वार्ता कर रहे हैं, पर यूट्यूब चैनल शुरू हुए 5 साल और 8 साल बाद – यानि कि 2011और 2014 में। इतनी देर से क्यों? क्योंकि आचार्य जी का ध्यान प्रचार की ओर नहीं था।
चैनल शुरू होने के बाद भी रिकार्डिंग एक साधारण मोबाइल या हैंडीकैम से होती रही―कभी बोधस्थल के किसी साधारण कमरे में, और कभी किसी निर्जन पहाड़ पर। आचार्य जी अपने साधारण कपड़ों में बैठ जाते और कैमरे की परवाह किए बगैर बस ध्यान में खोए बोलते रहते।
नतीजा?
2018 तक चैनल पर 4000 वीडिओ थे, और सब्सक्राइबर सिर्फ़ 3000!
फिर 2019 से आचार्य जी के कुछ प्रशंसकों और अनुयाइयों ने सक्रिय रूप से संस्था से जुड़ना शुरू किया। वीडियो-औडियो रिकार्डिंग क्वालिटी बेहतर बनाने पर, सही स्टूडिओ जैसा माहौल बनाने पर, और पेशेवर एडिटिंग व शूटिंग विशषज्ञों पर पैसा खर्च किया गया। और फिर सबको यह स्पष्ट हुआ कि आज के माहौल में बिना ज़बरदस्त खर्चे के आचार्य जी की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार नहीं हो पाएगा।
किसी तरह संस्था पैसों का प्रबंध करके प्रचार का काम आगे बढ़ाती रही। सबसे अधिक धनराशि लगती है वीडीओ को पहुँच यानी 'रीच' देने में। आज का समय ऐसा नहीं है कि शुद्ध सच्ची बात अनेआप लोगों में प्रचलित हो जाए। हमारी बात आप तक तभी पहुँचती है जब संस्था भारी खर्चा करती है। उसी का नतीजा है कि आज 65 लाख से ज़्यादा सब्सक्राइबर चैनल से जुड़ पाए हैं।
संस्था रोज दोनों चैनलों पर मिलाकर 10 से 15 वीडिओ डालती है, प्रतिदिन। और ये वीडिओ सबको मुफ़्त उपलब्ध हैं। अब (मई 2023) तक सिर्फ़ हिन्दी चैनल पर ही 150 करोड़ से ज़्यादा व्यूज़ आ चुके हैं।
लेकिन जिस अनुपात में संस्था मेहनत करके सत्र आयोजित कर रही है और वीडिओ प्रकाशित कर रही है, अगर उसी अनुपात में लोगों तक आचार्य जी की आवाज़ को पहुँचाना है, तो फिर प्रचार के लिए अथाह धन चाहिए।
आप तक भी आचार्य जी की आवाज़ इसीलिए पहुँच पाई क्योंकि किसी और ने संस्था को आर्थिक योगदान दिया था। वरना 2018 तक तो सिर्फ़ 3000 सब्सक्राइबर थे! अब आप इतने समय से इतने वीडियोज़ से लाभ उठा पा रहे हैं, इसकी हमें प्रसन्नता है।
क्या आपको आचार्य जी की सीख से लाभ हुआ है? क्या आप चाहते हैं कि आचार्य जी की बात करोड़ों और लोगों तक पहुँचे? क्या आप चाहते हैं कि जिस लक्ष्य को आचार्य जी ने अपना जीवन समर्पित कर दिया है वो साकार हो?
भूलिएगा नहीं कि यदि आप तक और औरों तक आचार्य जी की बात नहीं पहुँच रही, तो मन को, जीवन को, राष्ट्र को, और धर्म को, अँधेरे में डुबोने वाली अंदरूनी वृत्तियाँ और बाहरी ताकतें हमें गिरफ़्त में लेने को पहले से तैयार बैठी हैं। दीपक का प्रकाश आपको अँधेरे से बचा सकता है, लेकिन दीपक की रक्षा आपको ही करनी होगी।
यदि अँधेरे से अधिक प्रकाश प्यारा हो, तो जितना अधिक से अधिक हो सके संस्था को आर्थिक योगदान दें। संस्था अपने किसी निजी लाभ के लिए एक रुपए की भी उम्मीद नहीं रखती, लेकिन हमने जो सच्चा और साहसिक लक्ष्य बनाया है उसे पाने के लिए संसाधन चाहिए।
आप ही हैं जिनके लिए हम जूझ रहे हैं, आप ही हैं जिन्हें हमारी मेहनत से लाभ होता है, आपके ही योगदान से यह संघर्ष आगे बढ़ेगा।