मैं कौन हूँ अर्जुन? मैं निष्काम कर्म हूँ, और मुझे कुछ मत मान लेना। मेरे बारे में खूब कहानियाँ सुनो, उपेक्षा कर देना; मैं कुछ नहीं हूँ, मैं निष्कामकर्म हूँ। बाकी मेरे बारे में जो भी बातें होती हैं, व्यर्थ हैं। मैं वो हूँ, जो तुमसे कहता है कि जीवन की रणभूमि में भिड़ जाओ। जो तुम्हें लगातार बोलता रहे कि घुटने नहीं टेकने हैं। मोह के, माया के, अपनी आंतरिक दुर्बलताओं के विरुद्ध लगातार संघर्षरत रहना है; वो मैं हूँ। मैं वो हूँ, मेरे विषय में कोई और विचार कल्पना भ्रांति मत बनाना। समझ में आ रही है बात?
और फिर जैसे मैं हूँ, तुम्हें भी वैसे ही हो जाना है। तुम मेरी तरह अगर नहीं हो, तो कृष्ण कह रहे हैं 'तुम्हारा जन्म व्यर्थ गया।' मेरी तरह होने का क्या अर्थ है? जीवन को यज्ञ बना दो। बस ये बात पकड़ लीजिए।
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