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सुरक्षा और सुख दोनों आत्मा में है अर्जुन (कहीं और मत खोजना)

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 5 श्लोक 21 पर आधारित
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2 घंटे 3 मिनट
हिन्दी
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परिचय
लाभ
संरचना

आत्मा को लेकर हम आम भाषा में बहुत कुछ कहते हैं जैसे 'मेरी आत्मा यह करने की गवाही नहीं देती' या 'आज मेरी आत्मा रो रही है' या 'आत्मा से बोल रहा हूंँ' और भी हैं जैसे 'पुण्य आत्मा', 'पाप आत्मा'। वेदांत में अगर आप गहरे नहीं उतरेंगे तो हो सकता है इस श्लोक में आप अहम् को ही आत्मा कह दें।

मगर यह कर देने से नुकसान क्या है? सुनिए, न आपकी बेचैनी बदलती है और न आत्मा। ब्रह्म की बेटी है माया। और सबसे बड़ी गलती हमने यही करी है की हमने आत्मा को सांसारिक बना दिया है। अहम् जीता है सुरक्षा में। मगर अहम को सुरक्षा मिल नहीं सकती संसार में क्योंकि अहम् तो पल पल में रंग बदलता है और संसार अहम् के लिए कभी एक सा नहीं होता। हम बहुत डरे हुए हैं। तो क्या ऐसा है जो नहीं बदल रहा है– आत्मा।

अब बताओ अगर तुमने आत्मा को ही संसार की वस्तु बना दिया तो जीयोगे कैसे? क्योंकि संसार से तुम्हें दुख ही मिला है और मिलेगा।

श्रीकृष्ण अर्जुन को समझा रहे हैं कि तुम्हें आत्मस्थ होना है और आनंद में जीना है क्योंकि यही तुम्हारा स्वभाव है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

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