इस श्लोक में श्रीकृष्ण का रहे हैं —
न कर्मानुष्ठान से उसे कोई मतलब है, न कर्मत्याग से। फिर, “ऐसे मनुष्य के लिए संसार में किसी प्रयोजन की सिद्धि हेतु आश्रय करने योग्य भी कुछ नहीं है।”
माने किसी के साथ उसका स्वार्थ सम्बन्ध नहीं है। ये नहीं कहा है कि दुनिया में किसी से सम्बन्ध ही नहीं है, कहा है कि किसी से भी स्वार्थ सम्बन्ध नहीं है। समझो!
जब आपके पास बड़ी कामनाएँ रहती हैं न तो आपको झुकना पड़ता है। कृष्ण यहाँ पर कह रहे हैं, ‘जो ऐसा हो जाता है जैसा मैं बता रहा हूँ, उस आदमी को अब ज़िंदगी में कभी झुकना नहीं पड़ता, उसे किसी का आश्रय नहीं लेना पड़ता।’ क्यों? क्योंकि उसके पास कोई स्वार्थ नहीं है तो वो अपना मालिक स्वयं होता है, वो किसी दूसरे के आश्रय के नीचे नहीं रहता।
कामनाएँ बुरी नहीं है। लेकिन वह आपकी संभावना को रोक देती हैं। आप कुछ बहुत बड़े हो सकते थे लेकिन छोटे छोटे सुख के चक्कर में आपने आनंद को खो दिया।
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