पिछले श्लोकों में हमनें देखा कि श्रीकृष्ण यज्ञ के बारे में समझा रहे थे और अब श्रीकृष्ण 34 श्लोक में ज्ञान को सबसे ऊपर बता रहे है और कहते हैं ज्ञान तीन मार्ग से मिलेगा– प्रणिपात के द्वारा, परिप्रश्न के द्वारा और सेवा के द्वारा।
श्रीकृष्ण अब ज्ञान को सबसे ऊपर क्यों बता रहे है? जब कर्म प्रधान है तो अचानक ज्ञान की बात श्रीकृष्ण ने दोबारा क्यों छेड़ दी? क्या कर्मयोगी ही ज्ञानयोगी होता है?
फिर आगे 35 वें श्लोक में श्रीकृष्ण कहते हैं कि सब भूतों में मैं हूं। अब यह बात अर्जुन को क्यों समझा रहे है?
और फिर 36 वें श्लोक में कहते हैं कि 'जितने भी प्राणी हैं, पहली बात तो सब पापी हैं; जितने प्राणी हैं, सब पापी हैं। लेकिन अर्जुन, अगर तुम ये देख पाओ कि सबसे ज़्यादा पापी तुम हो तो ज्ञान की नाँव पर भवसागर पार कर जाओगे।'
कृष्ण क्यों कह रहे हैं कि अपने आप को पापी जानना? याद रखिए हम बात गीता की कर रहे हैं और गीता में पाप माने बंधन।
इतनी सारी गूढ़ बातों का अर्थ हम जानेंगे आचार्य प्रशांत संग इस सरल से कोर्स में।
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