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समबुद्धि को धारण करो अर्जुन

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 2 श्लोक 48–53 पर आधारित
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2 घंटे 24 मिनट
हिन्दी
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परिचय
लाभ
संरचना

श्रीकृष्ण जब निष्काम कर्म की बात करें तो याद रखिएगा वह कर्ता की निष्कामता की बात कर रहे हैं।

तो निष्काम कर्म की बात क्यों कर रहे हैं श्रीकृष्ण?

कुछ श्लोक पूर्व कृष्ण यही प्रयास कर रहे थे कि उन्हें आत्मज्ञान हो, वह अहम् को देख पाएंँ लेकिन अर्जुन दुख में इतना डूबे हुए हैं कि लगभग असम्भव सा है उनको अहम् यानी कर्ता की वास्तविकता दिखा पाना। इसलिए श्रीकृष्ण ने कर्म का सहारा लिया क्योंकि कर्म कर्ता की स्थूल अभिव्यक्ति होता है। कर्म के माध्यम से कर्ता को समझना आसान होता है और बिलकुल साफ हो जाता है कि किया गया कर्म आत्मा के ओर जा रहा है या प्रकृति की ओर। याद रखिएगा पूरी गीता बस तीन का खेल है: अहम आत्मा और प्रकृति।

आगे आप श्लोक में पाएंगे कि श्रीकृष्ण ने योगी की बुद्धि को समभाव कहके संबोधित किया है और कुशल बुद्धि को ही आत्मा का अनुगामी बताया है। पर बुद्धि की बात इतना क्यों जोर दे रहे हैं श्रीकृष्ण? उनके लिए जिन्हें लगता है कि अध्यात्म में तर्कों की क्या जरूरत? उनके लिए जो कहते हैं कि अध्यात्म में बुद्धि नहीं लगाई जाती। ऐसों के लिए तो श्रीकृष्ण के श्लोक ही पर्याप्त हैं। इस बार इस कोर्स के द्वारा हम जानेंगे कि श्रीकृष्ण बुद्धि के बारे में अर्जुन से इतनी बातें क्यों कर रहे हैं। ध्यान रखिएगा वह अर्जुन हम ही हैं।

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