23वें श्लोक में ज्ञानी के लक्षण बता रहे हैं कृष्ण आगे; उसी में, श्लोक में पहला ही शब्द है 'गतसंग'। जिसको अब संगति एक बाध्यता, विवशता, मजबूरी, अनिवार्यता के तौर पर नहीं चाहिए जो ऐसा हो गया वो बहुत आगे निकल गया। मगर हम ऐसे नहीं हैं।हममें आसक्ति है, हममें लिप्तता है, हम बँधते हैं, हम चिपकते हैं। कोई चाहिए जो साथ हो । या तो - संसार साथ हो, नहीं तो संसार की कल्पना साथ हो, और कोई और नहीं साथ मिला तो अपना साथ हो, पर साथ हो ज़रूर ।' साथ न हो तो भीतर भारी भय उठने लगता है, व्यक्ति थर्राने लगता है अकेलेपन से।
ऐसों के लिए श्रीकृष्ण ने क्या संदेश दिया है? और 24 वें श्लोक में एक बार फिर यज्ञ की बात छेड़ दी है? क्या श्रीकृष्ण कोई नई तरकीब सिखा रहे हैं अर्जुन को? क्यों श्रीकृष्ण गतसंगत होने को कह रहे हैं? इन सब प्रश्नों के उत्तर की गहराइयों में जाएंगे आचार्य प्रशांत संग इस सरल से कोर्स में।
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