तुम कौन हो? और वह कौन है जिसके लिए शोक कर रहे हो? इन दोनों प्रश्नों को जितना गहराई से पूछेंगे आप पाएंगे कि शोक हटता जा रहा है।
प्रक्रिया को प्रक्रिया जानों अर्जुन उसमें निजी या पर्सनल जैसा कुछ भी नहीं है। हर चीज़ को प्राकृतिक प्रक्रिया के तरह देखना का अभ्यास करो। प्रकृति से सही रिश्ता रखना ही प्रकृति से मुक्त होना है। ‘प्रकृति से रिश्ता उपयोगिता का और मंजिल से रिश्ता आत्मीयता का’ इसका अभ्यास होना चाहिए। प्रकृति से रिश्ता उपयोगिता का माने प्रकृति से उतना ही लेना है जितना आपको सत्य तक पहुंचाने के लिए उपयोगी हो। उससे अधिक ज़रा भी नहीं लेना है। प्रकृति से तुम्हारा न राग होना चाहिए न द्वेष होना चाहिए।
हर तरीके से श्रीकृष्ण चाह रहे हैं कि अर्जुन का ध्यान प्रकृति से खींचकर आत्मा तक ला सकें। इसलिए अर्जुन को भांति भांति से बात बदलकर समझाने का प्रयास कर रहे हैं।
अर्जुन के साथ साथ हम और आप भी सीख सकते हैं। आचार्य प्रशांत संग हम जानेंगे श्रीकृष्ण की सीखो को।
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