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लड़ो अर्जुन: निष्काम युद्ध करना सीखो

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 2 श्लोक 49–51 पर आधारित
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2 घंटे 13 मिनट
हिन्दी
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परिचय
लाभ
संरचना

साधारण कामना या सकाम कर्म क्या है? संसार में तृप्ति, शांति, पूर्णता खोजना, ये हुआ काम्य कर्म। इसको अच्छे से समझ लीजिए क्योंकि गीता में ये बार-बार उल्लिखित होगा और अगर इसको लेकर आप स्पष्ट नहीं हैं तो श्रीकृष्ण क्या कहना चाह रहे हैं इस आशय से आप वंचित रह जाएँगे।

अब आइए निष्काम कर्म पर। निष्काम कर्म क्या है? निष्काम कर्म है कर्ता की वो स्थिति जिसमें उसकी कामना प्रकृति में शांति खोजने की नहीं, अपितु प्रकृति के पार जाने की है। कामना है, पर कामना संसार के भीतर कुछ प्राप्त कर लेने की नहीं है। संसार के पार निकल जाने की है; तो संसार के प्रति निष्काम हो गया। तो संसार से कोई लेना-देना नहीं रहा? संसार से लेना-देना अभी है। संसार के प्रति उतनी ही कामना बची है जितनी संसार से पार जाने के लिए चाहिए। वही अब संसार से शेष सम्बन्ध है। संसार अब साध्य नहीं है, साधन है। संसार अब अंत नहीं है, माध्यम है – ये निष्काम कर्म है।

आचार्य प्रशांत संग हम जानेंगे गूढ़ शलोकों का अर्थ इस कोर्स में।

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