जिन सतगुरु पहचाना नहीं
उनको कहीं भी ठिकाना नहीं।
आपसे एक सवाल है: अगर सतगुरु आपके सामने आ भी जाएं तो आप उन्हें पहचानेंगे कैसे?
और अगर आपने उन्हें पहचान भी लिया तो यह कैसे परखेंगे की मेरी पहचान सही है?
सिर्फ़ एक ही समाधान है सतगुरु को पहचानने का; यह देख लीजिए की आप अपनी समस्या को पहचान पा रहे है या नहीं। पहला प्रश्न ही आपका यह होना चाहिए कि मैं कितना बीमार हूँ। जब आप अपनी बीमारी को गहराई से देख पाते हैं तब आप उसका उपचार भी कर पाते हैं और तब आप सही लाभ ले पाते हैं।
आपको यह दिखना चाहिए कि मेरा लाभ हो रहा है। जहाँ भी लाभ होता है आप रुकते हो। देखिए किन किन जगह आप रुक रहे हैं। अगर ऐसी कई जगहें हैं आपके मन में जहाँ आप रुकते हैं। तो अभी आप एक जगह नहीं रुके हैं, आप बहुत जगह रुक रहे हैं। इसका मतलब दौड़ निरंतर बनी है। असली सतगुरु आपकी सारी दौड़, आपकी सारी गति को अपने तक ले आता है।
लेकिन कई बार हम अपनी यथास्थिति बरकार रखते हैं क्योंकि गलत जगह बार बार रुकने के अभ्यस्थ हो गए हैं। आप अपनी समस्या को पहचान पाएं और लाभ ले पाएं इसलिए यह सेशन आपके लिए।
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