श्रीकृष्ण बताते हैं कि जो अयुक्त व्यक्ति हैं– उसके न बुद्धि है और न भावना है। चलिए थोड़ा पीछे चलते हैं, वहांँ हमने क्या सीखा था? यह पूछते रहें कि मालिक कौन है? क्योंकि बुद्धि तो दास है और बुद्धि जो भी करेगी वह दिशा अहम् ही निर्धारित करेगा।
अगर विषय का ज्ञान नहीं? विषयता का ज्ञान नहीं? तो ग़लतफहमी में अहम् आसक्त ही होगा। इसलिए जानने वालों ने कहा है – ‘बुद्धि का फल भोग नहीं बोध होना चाहिए’। जब भी कभी आप कहीं अटकें एक प्रश्न सदैव पूछें– यह सुलझा रहा है या उलझा रहा है?
यह तो रही बुद्धि की बात। दूसरा प्रश्न जो पहेली बन कर खड़ा है वह यह है कि भावना क्या है? इसका तो सीधा सा उत्तर है – वृत्ति की नियत मानें निष्ठा। याद रखिएगा जब भी दोनों आपस में भिड़ेंगे तो इक्वेशन कुछ ऐसे बनेगी: बुद्धि < भावना
तो ले दे के बात एक बात पर आती है; नियत क्या है? मुक्ति चाहते भी हो?
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