यदि मैं कर्म न करूँ तो ये सारे लोक नष्ट-भ्रष्ट हो जाएँ, मैं वर्णसंकर का कर्ता बनूँ और प्रजाओं के विनाश का कारण बनूँ।
‘वर्ण’ शब्द से कृष्ण का क्या आशय है? वर्ण शब्द जब गीता में आता है तो क्या अर्थ होता है उसका? वर्ण का अर्थ जाति नहीं है। वर्ण का सम्बन्ध जन्म से नहीं है; वर्ण का सम्बन्ध चेतना से है; कम-से-कम आदर्श रूप में।
तो वर्णसंकर कौन हुआ? दो चेतनाओं का कुछ इस प्रकार का मिलन जिसमें निचली चेतना हावी हो गई, उससे जो औलाद पैदा होगी वो वर्णसंकर कहलाएगी।
व्यक्ति आपस में मिलें, एक का नाम है मोह और एक का नाम है त्याग। इनका मिलन हो गया, जीतेगा कौन? मोह जीत जाएगा। अगर मोह जीत गया है तो इस मिलन से जो संतान पैदा होगी उसको कहते हैं वर्णसंकर। उसको बड़ा बुरा माना गया है। और मोह और त्याग में जीतने की ज़्यादा संभावना हमेशा मोह की ही है। त्याग सिर्फ़ तब जीत सकता है जब कृष्ण मौजूद हों, कृष्ण की उपस्तिथि हो; उससे मोह टूटता है और त्याग को बल मिलता है।
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