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आसक्ति छोड़ यज्ञ का कर्म करना सीखिए

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 3 श्लोक 9 पर आधारित
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3 घंटे 15 मिनट
हिन्दी
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परिचय
लाभ
संरचना

कर्म माने होता है परिवर्तन। यज्ञ का अर्थ है प्रकृति के निम्नविषयों को छोड़कर, उच्चतम विषय के लिए कर्म करना। दो ही तरह के कर्म होते हैं या तो यज्ञ और या तो सकाम कर्म। छोटे को छोड़ना बड़े के खातिर– यह यज्ञ है। इस बार इस श्लोक में एक बहुत विशेष शब्द है यज्ञ। यह बहुत आगे तक जाएगा इसे अच्छे से या रखिएगा।

यज्ञ का मतलब हुआ ऐसा चुनाव करो कि छोटे विषय को स्वाहा करके मैं ऊँचे विषय तक पहुँच गया।

इसलिए कर्म वो ही करो जो यज्ञ जैसे हों, विषय परिवर्तन आपको आत्मा के निकट पहुँचा दे, बाकी सारे कर्म आपको कर्मबंध में डालेंगे।

क्या यह सब पढ़ कर आपके मन में कर्म के ऐसे उदाहरण आ रहे हैं जो आपके लिए यज्ञ जैसे हों? अगर हाँ, तो आगे बढ़ते रहिए और इस कोर्स में और गहराई से डूबकर यज्ञ और कर्म को समझिए।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

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