वेदांत का संबंध किससे बचता है बस? चित्तशुद्धि, ब्रह्मविद्या। बाकी सब जो बातें हैं—जो धर्म की परिधि पर आती हैं, मान्यताएँ, परम्पराएँ, रस्में, कल्पनाएँ, मिथक, पूजा, आराधना इत्यादि और इनके विधि-विधान—इनका वेदांत से बहुत प्रयोजन बचता नहीं। जब वेद में यज्ञ का उल्लेख हो तो ये आशय होगा और फिर देवताओं की दिशा में सकाम मंत्र प्रेषित किए जाएँ। और जब कृष्ण कह रहे हैं यज्ञ तो उसका अर्थ बिल्कुल एक अलग आयाम में है। उसका क्या अर्थ है? निष्कामकर्म।
यज्ञ किसी बंधी-बंधाई पद्धति का नाम नहीं है। देखिए! वेदों का जो संहिता वाला भाग है—और वही भाग वेदों में प्रमुखतया है, ज़्यादातर श्लोक उसी तरफ से हैं—उसमें बहुत प्रकार के यज्ञों के बड़े विस्तृत विधि-विधान दिए गए हैं; कृष्ण उन यज्ञों की बात नहीं कर रहे हैं। ये बात साफ़ समझ लीजिए क्योंकि वेदांत में कर्मकांड के लिए कोई स्थान नहीं है। यही वजह है कि गीता में कृष्ण कई बार वैदिक कर्मकांड को बिल्कुल खुलकर नकारते हैं। यह पूरी बात आपको श्लोकों में स्पष्ट दिखेगी। आगे यज्ञ के बारे में श्रीकृष्ण क्या कहते हैं जानेंगे आचार्य प्रशांत संग इस सरल से कोर्स में।
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