श्रीकृष्ण कह रहे हैं - जो तुमको तरह-तरह के पापों में ढकेलता है, उसका नाम है 'काम' ('काम' माने पाने की इच्छा)। जो तुम्हारी रजोगुणी वृत्ति है, वही तुमको हर जगह आफ़त में डालती है।
दो तरह की राजसिकता होती है – एक सांसारिक और एक धार्मिक। दोनों को समझेंगे।
सांसारिक राजसिकता क्या होती है? व्यापार में ज़्यादा पैसा मिलने लग जाए, कुछ बाहरी उपलब्धियाँ हो जाएँ, तो मैं बढ़िया आदमी हो जाऊँगा। ‘मैं कुछ पा लूँ, मेरे सब दुखों का इलाज संसार में है’ – ये है सांसारिक राजसिकता।
धार्मिक राजसिकता क्या होती है? उसका नाम होता है कर्मकाण्ड, कि मैं दुनिया में कोई कर्म कर दूँगा, इससे मुझे मेरी इच्छित वस्तु प्राप्त हो जाएगी, मैं देवताओं की पूजा करूँगा तो वो मेरी मनोकामना पूरी कर देंगे।
सात्विकता क्या होती है फिर? जहाँ आप जान जाते हो कि आपका दुख कुछ माँगकर के, कुछ पाकर के नहीं मिटेगा, ज्ञान से मिटेगा, वो सात्विकता होती है। इसीलिए वेदों में जो कर्मकाण्ड है, ज्ञानकाण्ड उससे कहीं ज़्यादा श्रेष्ठ है; कर्मकाण्ड राजसिक है, ज्ञानकाण्ड सात्विक है।
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