अभी तक आपने देखा कि दूसरा अध्याय के 1 – 10 श्लोक अर्जुन विषाद योग का विस्तार ही हैं। अर्जुन संस्कारों का, सांप्रदायिकता का चोला ओढ़ कर बैठ गए हैं और युद्ध करने से मना कर रहे हैं।
सीधे सीधे अर्जुन नहीं बोलते हैं कि मोह है। इससे हमें अर्जुन के और अपने बारे में क्या पता चलता है? यही की वृत्ति तर्क, विचार, सिद्धांत का सहारा लेती है और अपना मंतव्य पूरा करती है।
श्लोक क्रमांक 11–14 में श्रीकृष्ण ज्ञान की चोट देना अर्जुन को प्रारंभ करते हैं। ज्ञान की चोट देते हैं और बोलते हैं – न तो ऐसा ही है कि मैं किसी काल में नहीं था, तू नहीं था अथवा ये राजा लोग नहीं थे और न ऐसा ही है कि इससे आगे हम सब नहीं रहेंगे। अब यह क्या नई पहेली श्रीकृष्ण ने अर्जुन के सामने रख दी?
फिर कहते हैं धीर पुरुष मोहित नहीं होते और सुख दुख को अनित्य जानकर सहा करो अर्जुन।
इतनी गूढ़ बात प्रारंभ होते ही!
यह क्या सीख दे रहे हैं कृष्ण अर्जुन को? क्या सीख से हमारा भी भला हो सकता है?
सब प्रश्नों के उत्तर जानेंगे इस सरल से श्लोक में।
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