सारा खेल बस इसका है कि चुन किसको लेते हो। बाहर कुछ भी हो रहा हो। आखिरी सवाल एक होगा, वह यह कि चुना किसको? आपके जीवन और मन में जो कुछ भी चल रहा है उसको बहुत महत्व देता है उसे प्रकृतिस्थ होना पड़ेगा।
आप बेहोश होकर जो भी निर्णय लेते हैं उस निर्णय की धारा बहुत आगे तक जाती है। वह बहती हुई धारा अब कहाँ तक जाएगी इसके बारे में अब कोई कुछ नहीं बता सकता। इसलिए अध्यात्म कहता है कि सतर्कता रखते हुए उस चीज को वहीं रोक दो क्योंकि उसके बाद क्या होगा कुछ पता नहीं।
इससे कुछ सवाल खड़े होते हैं कि–
कहाँ तक हम चयन या चुनाव कर सकते हैं? क्या वाकई हम मुक्त हैं? क्या वाकई freewill जैसी चीज होती है?
इन सब प्रश्नों के उत्तर जानेंगे आचार्य प्रशांत संग इस सरल से कोर्स में।
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