न शरीर में आत्मा है और न शरीर का आत्मा से कोई संबंध है। श्लोक की पहली पंक्ति में ही अष्टावक्र जी ने आत्मा से संबंधित बात बिल्कुल स्पष्ट कर दी है।
तो अब आप के मन में सवाल उठना चाहिए कि यह सब जो पुनर्जन्म का चक्कर यह कहाँ से आया?
यह जो आत्मा एक शरीर से निकलकर दूसरे में घुस जाती है यह चक्कर कहाँ से आया!
हम सब इनका समर्थन इसलिए करते हैं क्योंकि आप अष्टावक्र जी से दूर हैं। भूत प्रेत, जादू मंतर, टूना, टूटका सारी दुकानों पर ताला मार दिया है अष्टावक्र जी ने।
उन्होंने ऊँची से ऊँची बात लिखी और आपको सौंप दी। आप निर्णय करिए कि आप उस चाभी का प्रयोग कैसे करते हैं। कुरीति और अंधविश्वास पर ताला मारते हैं या उन्हें समाज में खुला छोड़कर, विरोध न करकर और फलने फूलने देते हैं।
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