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यज्ञ ही निष्काम कर्म है अर्जुन

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 4 श्लोक 25–33 पर आधारित
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1 घंटा 34 मिनट
हिन्दी
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परिचय
लाभ
संरचना

श्लोक चौबीस से बत्तीस तक अनेक प्रकार के यज्ञों का उल्लेख एक-के-बाद-एक कर रहे हैं कृष्ण जितने भी तरह के धार्मिक अनुष्ठान, पूजन, हवन, कर्मकांड हो सकते हैं, वो सबकी बात कर लेते हैं इन नौ श्लोकों में। और फिर उसके बाद अगले श्लोक में कहते हैं कि सारे इन यज्ञों से ज्ञानयज्ञ श्रेष्ठतर है।

यह कौन से यज्ञ के बारे में श्रीकृष्ण बता रहे हैं? आखिर धार्मिक लोग तो लकड़ी जलाकर स्वाहा बोलकर यज्ञ करते हैं तो श्रीकृष्ण ने क्यों बोला कि यज्ञ में ब्रह्म को देखो?

चौबीसवें श्लोक से लेकर के बत्तीसवें श्लोक तक हमें एक साथ पढ़ना और समझना पड़ेगा। और फिर तैतीसवें श्लोक में सबकुछ बताने के बाद श्रीकृष्ण कहते हैं कि उपरोक्त जितने यज्ञों की हमने बात करी, इन सबसे श्रेष्ठ है फलाकंक्षा रहित, माने निष्काम ज्ञानयज्ञ । क्या यही गीता का केंद्रीय उपदेश है? इन सारे प्रश्नों के उत्तर जानेंगे इस कोर्स में।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

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