निष्कामता कर्म के तल पर नहीं होती, क्योंकि कामना कर्म में नहीं कर्ता में छुपी हुई होती है।
आपके हृदय की जो स्थिति है वही आपकी अभिव्यक्ति बन जाती है माने कर्म बन जाती है। तो कर्म न करने से बात बनेगी नहीं क्योंकि कर्म का दमन करने से बात नहीं बनेगी। मूल कामना हटानी पड़ेगी।
निष्कामता नहीं मिलती कर्म को रोक देने से और जो आजतक कर रहे हो उसको रोक देने से भी बात नहीं बनेगी।
तो क्या करें की बात बने? कैसे समझें, कैसे जानें?
एक सूत्र बताए देते हैं– जीवन में कुछ ऐसा हो जाए जो आपको चोट दे तो मत जल्दी से घटना को दोष दे दीजिए मतलब कर्म पर दोष मत डालिए बल्कि पूछिए कि मैं ऐसा क्यों हूंँ कि मुझे चोट लगी? ऐसा कैसे हो पाया कि सामने वाला मुझे चोट दे सका। जगत कि ओर नहीं भीतर की ओर मुड़िए। कर्ता को देखिए।
तो आइए ऐसे कई सूत्र जानते हैं आचार्य जी के साथ इस सत्र में और जानेंगे कर्म, अकर्म, निष्कामता और सकामता के बारे में।
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