content home
लॉगिन करें

क्या जीवन इंद्रिय आसक्त हो के बिताना है?

Thumbnail
AP Name Logo
श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 3 श्लोक 16 पर आधारित
पूरी श्रृंखला देखें
3 घंटे 16 मिनट
हिन्दी
विशिष्ठ वीडियोज़
पठन सामग्री
आजीवन वैधता
सहयोग राशि: ₹199 ₹500
एनरोल करें
कार्ट में जोड़ें
रजिस्टर कर चुके हैं?
लॉगिन करें
छात्रवृत्ति के लिए आवेदन करें
वीडियो श्रृंखला को साझा करें
परिचय
लाभ
संरचना

''इस प्रकार जो चक्र चल रहा है अर्जुन, जो इसको देखते ही, ऐसे ही इसका अनुसरण नहीं करता उसका जीवन इंद्रिय आसक्त होकर के वृथा जाता है।''

इस श्लोक को देख कर क्या आपके मन में भी प्रश्न आ रहे हैं? जैसे –

किस चक्र कि बात कृष्ण यहाँ पर कर रहे हैं?
इस श्लोक का पिछले श्लोक से क्या संबंध है?
किस तरीके का अनुसरण करने की बात हो रही है?

कृष्ण कह रहे हैं – यही प्रकृति का धर्म चक्र, यही जो पूरा यज्ञ चल रहा है – जो इसको देखते ही, ऐसे ही इसका अनुसरण नहीं करता, अनुवर्तन नहीं करता, जो नहीं समझता कि मुझे वैसे ही जीना है जैसे कृष्ण इस पूरे ब्रह्माण्ड को चला रहे हैं – तो जो ऐसे नहीं जीता, उसका जीवन इंद्रिय आसक्त होकर के वृथा जाता है। साथ ही कह रहे हैं वो पापी है, उसका जीवन वृथा जाता है।

सरल शब्दों में, ‘जो मुझ जैसा नहीं हो पाता अर्जुन, उसका जीवन पाप में जाता है और व्यर्थ जाता है।‘ मुझ जैसा होने का मतलब? ऐसा घोर निष्कामकर्मयोगी होना जो बस करे।

क्या ऐसा होना संभव है? आईए जानते हैं इस कोर्स में।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

आप जिस उत्तर की तलाश कर रहे हैं वह नहीं मिल रहा है? कृपया हमारी सपोर्ट टीम से संपर्क करें।

कोई भी वीडियो श्रृंखला आचार्य प्रशांत के यूट्यूब वीडियो से कैसे अलग है?
क्या ये लाइव वीडियो हैं या इसमें पहले से रिकॉर्डेड वीडियो हैं?
वीडियो श्रृंखला के लिए सहयोग राशि क्यों रखी गयी है? यह निःशुल्क क्यों नहीं है?
सहयोग राशि से अधिक दान देने से मुझे क्या लाभ होगा?
वीडियो श्रृंखला की रजिस्ट्रेशन की प्रकिया के बाद मैं उसे कब तक देख सकता हूँ?
क्या वीडियो श्रृंखला के वीडियो को बार-बार देखने की सुविधा उपलब्ध है?
मुझे वीडियो श्रृंखला से बहुत लाभ हुआ, अब मैं संस्था की कैसे सहायता कर सकता हूँ?
130+ ईबुक्स ऍप में पढ़ें