''इस प्रकार जो चक्र चल रहा है अर्जुन, जो इसको देखते ही, ऐसे ही इसका अनुसरण नहीं करता उसका जीवन इंद्रिय आसक्त होकर के वृथा जाता है।''
इस श्लोक को देख कर क्या आपके मन में भी प्रश्न आ रहे हैं? जैसे –
किस चक्र कि बात कृष्ण यहाँ पर कर रहे हैं?
इस श्लोक का पिछले श्लोक से क्या संबंध है?
किस तरीके का अनुसरण करने की बात हो रही है?
कृष्ण कह रहे हैं – यही प्रकृति का धर्म चक्र, यही जो पूरा यज्ञ चल रहा है – जो इसको देखते ही, ऐसे ही इसका अनुसरण नहीं करता, अनुवर्तन नहीं करता, जो नहीं समझता कि मुझे वैसे ही जीना है जैसे कृष्ण इस पूरे ब्रह्माण्ड को चला रहे हैं – तो जो ऐसे नहीं जीता, उसका जीवन इंद्रिय आसक्त होकर के वृथा जाता है। साथ ही कह रहे हैं वो पापी है, उसका जीवन वृथा जाता है।
सरल शब्दों में, ‘जो मुझ जैसा नहीं हो पाता अर्जुन, उसका जीवन पाप में जाता है और व्यर्थ जाता है।‘ मुझ जैसा होने का मतलब? ऐसा घोर निष्कामकर्मयोगी होना जो बस करे।
क्या ऐसा होना संभव है? आईए जानते हैं इस कोर्स में।
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