श्रीमद्भगवद्गीता के श्लोक में और छान्दोग्य उपनिषद के तत् त्वम् असि में आप समानता देख पाएंँगे। कोई तो बात होगी की उपनिषद् के ऋषि और श्रीकृष्ण सत्य को 'तत्' या 'वह' कह कर संबोधित करते हैं। वेदांत को पूर्ण रूप से समझना है तो उपनिषद् की छांव तो लेनी ही पड़ेगी। आप भेद नहीं बैठा सकते की गीता तो अलग है और उपनिषद् अलग हैं। यहां इस श्लोक में आपको श्रीकृष्ण में ऋषि उद्दालक की और अर्जुन में श्वतकेतु की झलक मिलेगी।
श्रीकृष्ण कहते हैं– तीव्र बुद्धि होने से कुछ नहीं होगा अर्जुन। बुद्धि को तो सत्य की अनुगामिनी होना पड़ेगा। पिछले श्लोक में भी श्रीकृष्ण ने ऐसी बुद्धि को क्या कहा था? अगर आप जानते हैं तो इस श्लोक में सब पाएंँगे। और अगर नहीं जानते तो डूबने के लिए पुनः श्रीकृष्ण के पास आएंँ।
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