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क्या आसक्ति रहित कर्म हो सकता है

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 3 श्लोक 19 पर आधारित
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2 घंटे 30 मिनट
हिन्दी
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कुछ प्रश्न आपके लिए —

क्या कामना गिरते ही आपका कर्म भी गिर जाता है? क्या बिना जीत की आशा रखे आप कोई खेल सकते हैं?

जैसा हम जीवन जीते हैं, जवाब ‘न’ ही आएगा। क्योंकि अगर आपमें ऊर्जा इच्छा की पूर्ति के भाव से आती है तो जब आपको दिखाई देगा कि इच्छा पूरी होती अब सम्भव नहीं लगती, तो आपकी ऊर्जा भी ढल जाएगी। लेकिन जो इच्छापूर्ति के लिए नहीं बल्कि अपनी मौज के लिए, अपनी ठसक में, अपने धर्म की खातिर लड़ता है, उसकी ऊर्जा कभी नहीं गिरेगी; वो मर सकता है पर पीछे नहीं हट सकता। इच्छा आपको जितवाती नहीं है, इच्छा आपको हरवाती है।

इसलिए अर्जुन, अनासक्त होकर के सतत (लगातार) कार्य करते रहो (समाचरण करते रहो) क्योंकि व्यक्ति निष्काम कर्म करके श्रेष्ठ पद प्राप्त करता है।

जीवन में जो भी ऊँचे-से-ऊँचा, श्रेष्ठ-से-श्रेष्ठतर हो सकता है, वो निष्कामकर्म से ही मिलेगा। पीछे नहीं हटना है। पीछे आपको आपकी कामनाएँ हटाती हैं। ग़ौर से देखिएगा!

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

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