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हे अर्जुन! अपनी इंद्रियों को संयत करना सीखो

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 2 श्लोक 58–64 पर आधारित
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2 घंटे 1 मिनट
हिन्दी
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परिचय
लाभ
संरचना

'मैं एक अपूर्ण जीव हूँ जिसे संसार में पूर्णता मिल जाएगी’ – ये मूल अज्ञान है। वो मूल अज्ञान जब हटता है तो इन्द्रियों के पास कोई वजह नहीं बचती संसार की ओर लालायित हो देखने की या सुनने की या छूने की। आँखें फिर बस देखती हैं, खोजती नहीं।

आत्मज्ञान का अर्थ है कि आप जान गए कि मन को जो चाहिए वो संसार में नहीं मिलना। आत्मज्ञान का अर्थ है कि आप जान गए कि मन को जो चाहिए वो पाने से नहीं मिलता, वो गँवाने से मिलता है। आत्मज्ञान का अर्थ है कि मन को जो चाहिए वो मन के भीतर ही है, मन को दिख नहीं रहा है। आत्मज्ञान का अर्थ है जानना कि आपको कुछ त्यागना है अपने भीतर से, बाहर कुछ पाना है नहीं।

श्रीकृष्ण अर्जुन को बता रहे हैं कि संयत रखो अपनी इंद्रियों पर अर्जुन। आचार्य प्रशांत संग हम जानेंगे श्लोकों का अर्थ सरल भाषा में।

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