सांख्य माने ज्ञान और योग माने कर्म। एक मात्र श्रीकृष्ण ही हैं जो ज्ञान को निष्काम कर्म के ठीक बराबर रखते हैं।
आत्मज्ञान का उपदेश देते देते अचानक श्रीकृष्ण को कर्मयोग अर्थात् निष्काम कर्म अर्जुन को क्यों बताना पड़ा?
देखिए, सत्य एक है, लेकिन सुनने वालों की बुद्धि कितने अलग-अलग तरीकों की है, तो उसी बात को किसी को ऐसे बताना पड़ेगा किसी को वैसे बताना पड़ेगा।
आत्मज्ञान से बात बनता न देख कर अर्जुन को श्रीकृष्ण निष्काम कर्म के फायदे गिना रहे हैं। गिनाएँ भी क्यों न? बिना फायदे के हम कोई काम करते भी हैं क्या? मगर श्रीकृष्ण के फायदे भी निराले हैं। वह कोई आम फायदे नहीं, एक उच्च और मुक्त जीवन जीने का सूत्र है। वह ऐसे फायदे नहीं हैं कि स्वर्ग मिलेगा, कर्मकांड से कामनाएं पूरी होंगी, अगले जन्म में ऐश्वर्य भोगोगे। गीता तो इन सब बातों का खण्डन करती है।
फिर असली फायदा श्रीकृष्ण अर्जुन को सुनाते हैं कि तुम प्रकृति से आगे निकल जाओ अर्जुन। मगर कैसे निकलेंगे? क्या इसकी भी कोई विधि है? सब सवालों के उत्तर जानेंगे आचार्य प्रशान्त संग गीत कोर्स में।
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