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अष्टावक्र गीता (प्रकरण– 8, श्लोक– 3)
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3 घंटे 30 मिनट
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परिचय
लाभ
संरचना

Ego मतलब अहंकार। हम यही मानते हैं कि यह हमारे लिए बुरा है। जिसके कारण ego बुरा बन जाता है और बाकी सब बच जाते हैं।

अगर प्रश्न किया जाए कि ego माने क्या? तो आप क्या जवाब देंगे?

अगर आपको उत्तर नहीं सूझ रहा तो इसका मतलब है कि बहुत कुछ है जिंदगी में जिसपर हम उंगलियाँ नहीं उठा रहे हैं। मान्यता, स्मृतियाँ, अतीत, संबंध, आशाएं, चुनाव, आदत, व्यक्तित्व, मजबूरी, कर्म। अहंकार को बुरा बोलकर हम इनपर कभी बात ही नहीं करते, और कोई करे तो वहाँ से चलते बनते हैं। नतीजा, हमारी विषयों के प्रति आसक्ति बढ़ती जाती है और जीवन बंधन के पाश में बंधता चला जाता है।

आप भूल जाते हैं जीवन के असली मुद्दे और फिर यह मुद्दे हमारे लिए परेशानियों का कारण बन जाते हैं। इसलिए अष्टावक्र जी ने इस श्लोक में बोला है कि मुक्त वही जो सारे विषयों से अनासक्त हो।

अनासक्त होने के लिए यह तो पता होना चाहिए कि हम किन चीज़ों से आसक्त है? अपने जीवन और चुनावों के बारे में हमें उंगलियाँ नहीं उठा रहे तो इसका साफ़ मतलब है कि हम ध्यान, संयम और सतर्कता सब खो रहे हैं। न चाहते हुए भी आशांति को आमंत्रण दे रहे हैं।

आशांति के आमंत्रण को ठुकराया जा सकता है। बस प्रेम का आमंत्रण आप स्वीकार कर लें। सीखिए आचार्य प्रशांत संग अष्टावक्र गीता का अर्थ सरल शब्दों में।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

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