आमतौर पर हमारे मन में यह छवि रहती है कि कृष्ण तब आते हैं जब वह साधु की चीत्कार सुनते हैं की वह मुश्किल में हैं और कृष्ण ने आकर उन्हें बचा लिया। वेदांत की यह मंशा नहीं है कि वह आपको बाल कहानियांँ सुनाए। यहांँ जो बात हो रही है वह बताया जा रहा है कि साधु में ही कृष्णत्व का उदित हो जाता है जब साधु को यह दिखता है कि साधु की रक्षा का यही उपाय है।
ठीक उसी प्रकार अधर्म भी आपके अंदर की मन की व्यवस्था था है जो आपको दुख देती है। मुझे दुख से आजादी के लिए नया चुनाव करना पड़ेगा। वह जो नया चुनाव है वह कृष्ण है।
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