या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी। यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः॥
मनुष्य अगर जितेंद्रिय है तो वह प्रकृति के विपरीत नहीं जाता वह प्रकृति के अतीत जाता है। अगर वह रात में भी जगा हुआ है तो वह प्रकृति के विपरीत नहीं जा रहा है बल्कि वह आत्मा की तरफ मुख कर के खड़ा है। अब बताओ भला उसे पता चलेगा कि रात हो गई है। न वह प्रकृति के साथ है, न वह प्रकृति के विपरीत है।
उसे पता ही नहीं है कब भोर हुई कब रात हुई। संयमी को मतलब नहीं है कि काल की धारा कहांँ चली गई! ज्ञानी न समय के आदेश का पालन करना है, न उल्लंघन करता है।
अब इससे आपको झलक मिलेगी की तपस्या किसे कहते हैं? तपस्या कहते हैं काल के प्रवाह को भूल जाना।
वहीं दूसरी ओर ज्ञानी जानते हैं कि जब तुम्हारी आंखें खुली हुई होती हैं, वह समय तुम्हें सबसे ज्यादा धोखा होता है क्योंकि अब आप जागृत अवस्था में हैं, अब तो द्वैत का खेल चलेगा। और मुनि जानते हैं कि तब आप सोए हुए हैं।
मगर इन सारी बातों से श्लोक में आए हुए निशा शब्द से क्या लेना देना है?
निशा शब्द जो श्लोक में दो बार आया है क्या वह दोनों अर्थ में भिन्न है?
मुनि की रात और साधारण आदमी की रात कैसे भिन्न होती है?
इन सारे प्रश्नों का उत्तर जानेंगे इस सरल से कोर्स में।
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