अर्जुन बरसों तक, दशकों तक कृष्ण को अपने जीवन में बड़ी श्रेष्ठता दी है। जैसा कहा है कृष्ण ने, अर्जुन ने चुपचाप करा है। कोई आध्यात्मिक जीवन भर में नहीं, अपने व्यक्तिगत जीवन में भी। अपनी हर छोटी-बड़ी बात उन्होंने कृष्ण के सामने रखी है, अर्जुन के सब निर्णयों पर कृष्ण की सलाह का प्रकाश है। जब ऐसा घनिष्ठ संबंध अर्जुन ने दशकों तक पनपाया है, उस पौधे को दशकों तक खाद-पानी दिया है, तब जाकर के आज उस वृक्ष पर गीता का फल लगा है। अचानक कुछ नहीं हो जाता है और कृष्ण के समीप रहना हल्की बात नहीं है। कृष्ण का तो काम ही है अर्जुन को बस अर्जुन ना रहने देना बल्कि कुछ और बना देना। कृष्ण के समीप रहने का अर्थ होता है टूटते चलना। और समीपता का मतलब वैसी समीपता नहीं होता जैसी समीपता भीम की है या युधिष्ठिर की है। एक सीमा तक तो दुर्योधन भी समीप है, वैसी समीपता नहीं। उतनी निकटता चाहिए होती है कि जिसमें हाथ ही पकड़ लें वो तुम्हारा। उतने निकट नहीं हो तो अपने-आपको फुसलाकर मत रखो कि निकट हो।
इस कोर्स के माध्यम से जानेंगे की अर्जुन जब घबराने लगते हैं, कांँपने लगते हैं तब श्रीकृष्ण क्या कहते हैं।
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