पूरे पहले अध्याय में, ऐसे समझ लीजिए, जैसे आपने अर्जुन की बाण वर्षा देखी। और दूसरा अध्याय ऐसे शुरू होता है कि जैसे सौ सुनार की एक लोहार की। सौ बातें कह ली अर्जुन ने पहले अध्याय में: ये है, वो है, न जाने क्या-क्या। दूसरा अध्याय आरंभ होता है और कृष्ण का एक तीर। बात खत्म हो गई। ‘अर्जुन, तुम मोह ग्रस्त हो!’
वास्तव में सरल व्यक्ति के लिए जटिलता कहीं होती ही नहीं। जटिलता सिर्फ़ जटिल मन के लिए होती है। जो जितना जटिल है उसकी दुनिया उसके लिए उतनी ही जटिल रहेगी। आप आकर अपनी बड़ी लंबी-चौड़ी, उपन्यास सरीखी, कहानी सुना देते हैं। सुनने वाले के पास यदि साफ़ कान है तो वह जान जाता है कि इस पूरी कहानी का सार क्या है, लब्बोलुआब क्या है। और जो सार होता है उसमें कोई विशेषता नहीं होती। किसी को काम ने पकड़ रखा है, किसी को क्रोध ने, किसी को मोह ने, किसी को मद ने, किसी को भय ने, बस यही। क्योंकि इसके अलावा और कुछ होता ही नहीं है किसी भी व्यक्ति के जीवन में।
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