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आशातीत होना जानिए और सीखिए

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 4 श्लोक 21–22 पर आधारित
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1 घंटा 39 मिनट
हिन्दी
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परिचय
लाभ
संरचना

आशा संसारी जीव के लिए बड़ा अनिवार्य तत्व है। आम आदमी कहता है कि जीवन उम्मीद पर चलता है। और जिन्हें सचमुच जीना है, जो जीवन सफल करना चाहते हैं, वो ज्ञानियों के पास जाते हैं। ज्ञानियों ने कहा है, 'आशा परमं दुखं।' आशा से बड़ा दुख दूसरा नहीं है। आपके सब दुखों का कारण है समय से, भौतिक जगत से, अहंकार से, और प्रकृति से, ये आशा करना कि कुछ अच्छा हो जाएगा। आप ग़लत जगह झोली फैलाकर बैठ गए। और ये पता नहीं लगने पाता। पता लग सकता यदि, तो आम संस्कृति में आशा को इतना आदर नहीं प्राप्त होता।

श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि प्रकृति से आशा रखना माने माया से आशा रखना। ऐसी जगह जाकर के अपेक्षा खड़ी कर लेना जहाँ पूरी होने की कोई संभावना हो ही नहीं सकती। रेगिस्तान में कुआँ खोदने की कोशिश, आकाश में फूल खोजने का प्रयास, ऐसी होती है आशा।

21 और 22 श्लोक को समझेंगे इस सरल से कोर्स में।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

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