चलना है दूर मुसाफिर अधिक नींद क्यों सोए रे
इसको पढ़ के आपको वेदांत के दो सिद्धांत याद आएंगे:
पहला: कोहम? (कौन हूँ मैं? ) उत्तर: मुसाफिर
दूसरा: नियति क्या है मेरी? उत्तर: चरैवेति चरैवेति
आपका मन ही दूरी है। मन जब तक है तब तक यात्रा है। मुसाफिर मानें वह जो लगातार यात्रा पर है। अगर आप हैं तो आप की यात्रा समाप्त नहीं हुई है। यात्रा अनंत है इसलिए दूरी भी अनंत है।
मगर हम कहाँ मानते हैं? हम यात्रा में तम्बू लगा देना चाहते हैं। हमें सिर्फ सुख नहीं चाहिए। हमें तो सुख का तम्बू चाहिए। अब तो सारे निर्णय इसी केंद्र से ही करूँगा कि कहाँ सुख लगातार मिलता रहेगा। जितना मांग बढ़ती जाएगी, न मिलने पर दुख उतना बढ़ता जाएगा।
तो क्या करना है? न सुख वर्जित रखना है और न सुख के लिए अर्जन करना है। अरे भाई! नहीं सोगे तो चलोगे कैसे और सोते ही रह गए तो चलोगे कैसे? सिर्फ उतना रखिए जो आप की यात्रा में सहायक हो।
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