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नियत कर्म कैसे करें

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श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 3 श्लोक 8 पर आधारित
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2 घंटे 48 मिनट
हिन्दी
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सहयोग राशि: ₹199 ₹500
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परिचय
लाभ
संरचना

इस कोर्स में हम एक बार फिर बात करेंगे कर्म की। शरीर के होने भर से गति चल रही है। शरीर खत्म भी हो जाए तो भी कर्म चलता रहेगा। तुम कुछ भी न करो फिर भी कर्म तो चल ही रहा है। इंसान जब तक है कर्म तब तक है।

कौन बेहतर है कर्म या अकर्मण्यता?
कर्म बेहतर है अकर्मण्यता से। अभी तो आप कर्म करें क्योंकि आप जहाँ हैं वहाँ जरूरी है, मजबूरी है कि आप युद्ध करें। ध्यान रखें कृष्ण ने बोला है विगतज्वर्, युध्यस्व। एक ही युद्ध की बात हो रही है, आत्मा के लिए लड़ना।

अब आगे का प्रश्न है कि कौन सा कर्म करना है?
कर्म कर्ता के लिए ही करते हो न! कर्ता का भला इसी में है कि वह अपनी नियति कि ओर बढ़ जाए। नियत कर्म करना है। कर्म वो करो जो तुम्हें नियति की ओर ले जाता हो। नियति क्या है? मुक्ति।

आपके लिए ये दोनों सूत्र काम के हैं
नियत कर्म करिए।
कर्म बेहतर है अकर्मण्यता से।

आगे इस कोर्स में जानेंगे कि कृष्ण और कौन कौन से रहस्य हमें कर्म के बारे में बतलाते हैं।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

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