आप अपनी मासिक आय देख लीजिए, आप अपने खर्चों का हिसाब देख लीजिए और देखिए कि उसमें से कितना बड़ा हिस्सा उन जगहों में जा रहा है जो जगहें आपको खाए जा रही हैं। आप बताइए दानव को पोषण कौन दे रहा है? संयोग, समाज, परिस्थितियाँ या आप स्वयं?
अगर आपकी ज़िंदगी में कुछ समस्याएँ हैं तो ऐसा हो ही नहीं सकता कि आपने उनको पोषण न दिया हो। और कई बार तो बात इतनी नाटकीय हो जाती है कि वो पोषण सीधे-सीधे आपके बैंक स्टेटमेंट में दिखाई देता है। साफ दिखाई देता है – देखो, यहाँ पर इसने अपने दानव को पोषण दिया है, यहाँ पर अपने दानव को पोषण दिया है। वो आपकी ही दी हुई खुराक पर ज़िन्दा है और आपको ही खा रहा है।
पैसा नहीं उड़ाया है, वो जीवन उड़ रहा है धुँआ-धुँआ होकर। और कितना अच्छा लगता है न कि ‘आज मैं इतना कमा रहा हूँ कि मैं उड़ा पाता हूँ। इसी दिन के लिए तो मैं जिया था, इसी दिन का तो सपना मेरे माँ-बाप ने देखा था, एक दिन ऐसा आएगा जब मैं दानवों को भोज करा पाऊँगा, भीतर राक्षस को ऐश करा पाऊँगा।‘ इसी दिन के लिए तो हम जीते हैं और यही तो हमारे रोल मॉडल्स हैं जो ऐश करते हैं।
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