जो जीवन में हटने योग्य है वह तभी तो हटेगा न जब पहले पता चले कि वह कोई नीची, निकृष्ट, हेय चीज़ है। जो नीची चीज़ है वह जीवन में ये बोल कर थोड़े ही बनी रहती है कि वह नीची है। जीवन में जो कुछ भी निम्न है, नीचा, वह भी यही कहकर के तो बसा हुआ है ना कि मुझमें भी कुछ दम है, मेरी भी कोई बात है, कोई शान है, कोई मूल्य है, कोई ऊँचाई है। वह भी अपनी शेखी तो बघार ही रहा है, 'मैं भी कुछ हूँ'।
आदि शंकर कह रहे हैं साफ़ देखो लो कि क्या है जो वास्तव में कीमती है, और क्या है जो बस कीमती होने का ढोंग कर रहा है। यह देख लोगे तो आग पैदा होगी जो जीवन के सब कचरे को जला देगी। आत्मबोध के प्रकाश में अपने जीवन को एक नई दिशा दीजिए, आचार्य प्रशांत के साथ इस सरल कोर्स में।
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