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लेख
ख़ुद से ये पूछा करो || नीम लड्डू
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
2 मिनट
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किससे मिल रहे हो? किससे नहीं मिल रहे हो? कहाँ रोज़ पहुँच जाते हो? कहाँ से पैसे ला रहे हो? पहली बात – क्या ईमानदारी से काम रहे हो? दूसरी बात – जो कमा रहे हो, उसको खर्च कहाँ कर रहे हो? छः घण्टे से कोई खबरिया चैनल लगा कर के बैठ गए हैं, जिसपर एक-के-बाद-एक मूर्ख आते जा रहे हैं और बक-बक करते जा रहे हैं। कुल मिला कर जो उन्होंने बोला है, वो एक वाक्य में कहा जा सकता है; आपने जीवन के छः घंटे दिए हैं अभी-अभी इस टीवी को, क्यों दिए हैं भाई? जो करते हो उसपर ग़ौर करो। खोल रखा है ट्विटर, देखो वहाँ पर किसको फॉलो किए जा रहे हो, क्या पढ़ रहे हो वहाँ पर? एक-के-बाद-एक * ट्वीट्स * । किन लोगों की, और क्यों?

अखबार खोल रखा है, क्या भा रहा है उसमें? किस नाते देख रहे हो? कौन-सी चीज़ घर में जमा कर रखी है? उनकी उपयोगिता क्या, आवश्यकता क्या? कौन सी बातें सुनकर परेशान हो जाते हो, ईर्ष्या उठने लगती है, दिल दहल जाता है बिलकुल? इन बातों पर रोशनी पड़ने दो। ये अध्यात्म है।

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