आचार्य प्रशांत आपके बेहतर भविष्य की लड़ाई लड़ रहे हैं
लेख
ये कौन छा गया मन पर || आचार्य प्रशांत (2017)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
11 मिनट
15 बार पढ़ा गया

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, बहुत बार ऐसा होता है कि हम कुछ लोगों को बड़ा समझने लगते हैं, और उन्हें तवज़्ज़ो देने लगते हैं। समझ नहीं आता कि ऐसा करना भी चाहिए या कोई सम्यकता रखनी ज़रूरी है?

आचार्य प्रशांत: यूँ तो होगा ही, वो होना ही पक्का है। देखो, दुनिया तो झूले की तरह है, बच्चों का झूला होता है सीसॉ, उसमें क्या होता है? एक उठा सिर्फ़ तब जब दूसरा। उसमें कभी ऐसा देखा है कि दोनों उठे हुए हैं कि दोनों गिरे हुए हैं (हाथों इशारा करते हुए)। देखा है कभी ऐसा? इस दुनिया में ऐसा ही है। दुनिया में सम्यकता नाम की कोई चीज़ नहीं होती। सम्यकता सन्तुलन नहीं है। सम्यकता सन्तुलन नहीं है कि ऐसे बराबर कर दिया उसको (हाथों से एक तल में होने का इशारा करते हुए)। सम्यकता कोई और बात है। सम्यकता का अर्थ होता है दैवीय संगीत, औचित्य। औचित्य समझते हो? उचित होना, राइट होना।

सन्तुलित होने और सम्यक होने में आयामगत अन्तर है। हम सन्तुलन तो जानते हैं कि अच्छा आपको पहले ज़्यादा इज़्ज़त दे दी थी, फिर बहुत ही कम कर दी, तो अब बीच की इज़्ज़त देंगे। बीच की इज़्ज़त क्या होती है? कि पहले झुककर पाँव छूते थे, ये ज़्यादा इज़्ज़त हो गयी, फिर एकदम ही इज़्ज़त नहीं दी तो तनकर खड़े हो गये। फिर समझ में आया कि ये तो गड़बड़ हो रही है, तो फिर बीच की इज़्ज़त दी। बीच की इज़्ज़त क्या दी? कि फिर उसका पेट छूना शुरू कर दिया।

पहले बोलते थे पाय लागूँ , अब बोलते हैं पेट लागूँ। इज़्ज़त देने में उसका पेट सहला दिया। इशारा समझो। बड़ा गड़बड़ हो जाता है मामला, कई लोग करते भी ऐसे ही हैं। देश के जो पश्चिमी भाग हैं वहाँ ये भी खूब प्रचलित हो रहा है कि घुटने छुने के नाम ये पाँव छूने के नाम पर घुटने और जाँघें छुयी जाती हैं। पाय लागूँ , वो आयेगा वो ऐसे (छुकर मस्तक पर लगाने का इशारा करते हुए)। मैंने कहा, ‘तू कर क्या रहा है?’

सन्तुलन नहीं, सन्तुलन बड़ी हास्यास्पद स्थितियाँ पैदा कर देगा। सन्तुलन के तो चुटकुले बन जाएँगे। तुम्हें इज़्ज़त देनी है तो उसको दो जो वाकई इज़्ज़त देने के काबिल है।

तुमने कहा मन पर घूमने लग जाता है कोई, जब उसको ज़्यादा तवज़्ज़ो दे दी। ये ग़लत नहीं हो रहा, ये बिल्कुल सही हो रहा है। बहुत ज़रूरी है कि कोई रहे जो हर समय मन पर छाया रहे। भूल इसमें नहीं है कि कोई मन पर छा गया; भूल इसमें है कि कोई भी मन पर छा गया। मन है कि पब्लिक कार पार्किंग? कोई भी गया, खड़ा कर आया। सुलभ शौचालय। पाँच रुपए देकर वहाँ लोग हल्के हो रहे हैं। ऐसा नहीं होना चाहिए। मन पर तो कोई छाये, इससे प्यारी बात हो नहीं सकती। सतर्क ये रहना कि कौन छाया। किसको छाना चाहिए, ये जानते हो? बात हमने खूब करी है, एक ही है जो छाने के क़ाबिल है। वो छा रहा है, क्या बात है; वो नहीं छा रहा है तो क्या बात है (भयभीत होने का इशारा करते हुए)।

समझ रहे हो?

खुला तो मन को कभी छोड़ ही मत देना, बेलगाम घोड़ा, दौड़ा-दौड़ा। उस दिन लल्लेश्वरी का एक वाक् हम पढ़ते थे, वो कहती थी कि तुमने अगर गधेे को खुला छोड़ा, तो सीधा जाएगा, और पड़ोसी का खेत चरेगा। कुछ जोड़-घटाव नहीं कर रहा हूँ, बिलकुल यही कहा है उन्होंने। कि तुम्हारे पास जो गधा है तुमने यदि इसको अगर खुला छोड़ा, तो इसको एक ही धन्धा है कि जाएगा और पड़ोसी के खेत में घुसेगा, और चरेगा। और हर बात इसमें प्रतीक है। गधा भी प्रतीक है, पड़ोसी का खेत भी प्रतीक है। ये गधा वो नहीं है जिसको तुम खुला छोड़ो तुम्हारे पास आए। ये कहाँ जाता है? ये पड़ोसी की ओर जाता है। पड़ोसी माने ‘दुनिया’। और वहाँ जाएगा, खेत चर लेगा। ये तो चर आया खेत। और पिटेगा कौन? गधा तो एक ही दो डंडे पाता है, मालिक का कई बार इन चक्करों में कत्ल भी हो जाता है।

मन तो अपनी कर आएगा, भुगतोगे तुम। तो गधेे के ऊपर मालिक बैठा हो बहुत ज़रूरी है। मालिक बैठा हो, गधेे के ऊपर दूसरा गधा बैठा हो तो? हमने कहा ही था उसमें चुटकुले पैदा हो जाते हैं सन्तुलन के चक्कर में एक-से-एक हास्यास्पद स्थितियाँ निकलती हैं, कि देखिए साहब खुला तो नहीं छोड़ना है, लेकिन मालिक को भी नहीं बैठाना है, तो बीच का रास्ता निकाला, क्या? गधेे के ऊपर गधा बैठा दिया कि टट्टू बैठा दिया। कुछ और बैठा दिया, कुत्ता बैठा दिया, सुअर बैठा दिया, बढिया! ये नहीं करना है।

एक तो पहले ही गधा लेकर हम सब पैदा होते हैं, और ऊपर से गधेे को मिल गया गधसवार। वो मत करना, उसे मालिक देना। मालिक तुम्हें बताएगा फिर कि कहाँ झुकना है कहाँ नहीं। वो मालिक तुम्हें ये भी बता देगा कि इस दुनिया में कहाँ झुकना है कहाँ नहीं, किसके साथ क्या व्यवहार करना है। उसके सामने झुके हो अगर तो इस दुनिया के तुम्हारे सारे रिश्ते-नातों में उसकी छाप रहेगी, उसकी खुशबू रहेगी (ऊपर की ओर इशारा करते हुए)। उसका मतलब समझते हो न (ऊपर की ओर इशारा करते हुए)? सच्चाई। और उसके सामने न झुकने का मतलब होता है कि झूठ के साथ चल रहे हैं। और झूठ माने क्या? झूठ माने यही कि पुरानी कोई मान्यता है उस पर चल रहे हैं, परिपाटी है उस पर बह रहे हैं, परम्परागत, ख़ानदानी प्रवाह है उसमें हम भी बहे चले जा रहे हैं।

कहा ही गया है कि फलाने आएँ तो सज़दा करना। पूरा ज़माना करता है हमने भी कर दिया। ये तुम सच के साथ नहीं हो, ये तुम ज़माने के साथ हो। जो सच के साथ होते हैं उन्हें ख़ुद-व-ख़ुद पता चल जाता है कहाँ हाथ बढ़ाना हैं, कहाँ पीछे हट जाना हैं, कहाँ सर झुकाना हैं, और कहाँ तन जाना हैं। वहाँ से आदेश लो न, कि आप बताइये कि कौन है प्यार के क़ाबिल? कौन है इज़्ज़त के क़ाबिल? किससे सीखें? और किसको सिखाएँ? वो सब बताएगा।

अपनेआप फै़सला करोगे तो वही सब होगा जो हो रहा है अभी, जो तुमने कहा है कि कभी अतिशय गम्भीरता, और कभी अतिशय बेमनापन; कभी गम्भीर-ही-गम्भीर हैं, और कभी बड़े उदासीन; कभी वज़न-ही-वज़न दिये जा रहे हैं, और कभी भाव ही नहीं दिया कि जैसे अनहद हो। और पहले ढोल बजा रहे थे तो ऐसे जैसे उसका चुम्बन ले रहे हों, छू रहे हों उसको धीरे-धीरे। अब किसी ने आकर कहा, ‘क्या कर रहे हो तुम?’ तो अचानक याद आया कि अरे ये तो कम हो रहा था। तो फिर उठाये अपने दोनों वज्रबाहु, और दिये दो घूसे दो तरफ़, और बच्चू को एक ही झटके में फाड़ दिया। हमारा तो ऐसे ही रहता है।

तुमने कभी देखा है, तुम्हें सबसे ज़्यादा नफ़रत किनसे होती है? जिनसे कभी तुम्हारी यारी रही होती है। जिससे कभी तुम आसक्त न रहे हो उससे तुम घृणा नहीं कर सकते। मन सिर्फ़ छोरों पर बैठना पसन्द करता है। कल तक खूब बनी, आज तगड़ी दुश्मनी; कल तक प्रियतमा, आज सामने मत आ।

तुम किसी ऐसे से नफ़रत करके दिखा दो जिसको कभी अपना न माना हो। करके दिखाओ। और जिसके प्रति गहरी-से-गहरी नफ़रत दिखा रहे हो, बड़ी सम्भावना है कि एक दिन उससे कहोगे कि मोहब्बत हो गयी। मन ऐसी ही चाल चलता है। कि जैसे कोई टेनिस में सर्विस करता हो। जानते हो न उसमें दो सर्व मिलती हैं। तो पहली ऐसी करी कि अपने ही पाले में गिरा ली। कहा, कोई बात नहीं एक मौका और मिलेगा, और दूसरी ऐसी करी कि दूसरे के भी पाले के पार, पर जहाँ गिरनी थी वहाँ कभी नहीं गिरी।

समझे बात को?

लर्न टू सर्व राइटली (सही ढंग से सेवा करना सीखें)। सर्व का मतलब समझते हो न? यू मस्ट नो हूम टू सर्व (आपको पता होना चाहिए किसकी सेवा करनी है), किसकी सेवा करनी है जानो। ‘लर्न टू सर्व राइटली (सही ढंग से सेवा करना सीखें)’, टेनिस भी जीतोगे, दुनिया भी जीतोगे, नहीं तो डबल फॉल्ट (दोहरा दोष), दोनों तरफ़ से मारे गये।

जब कोई सन्त, कोई फ़कीर तुमसे बीच का मार्ग लेने को कहे, तो उसको ऐसे पढ़ना कि वो तुमसे कह रहा है, ‘न इधर का न उधर का।’ न इधर का न उधर का, पर इधर-उधर का नहीं लेना है, इसका मतलब ये नहीं कि बीच का ले लेना है। इसका मतलब ये है उधर का (ऊपर कि और इशारा करते हुए)। अब उधर का बोल दें तो फँस जाओगे, लोग कहेंगे, अब ये कंफ्यूज कर रहे हैं, कंफ्यूजिस। तो वो फिर भाषायी तौर पर कह देते हैं बीच का।

बीच को तुम निषेधात्मक तरीक़े से पढ़ना कि बीच बोला है माने न इधर को जाना है न उधर जाना है। और दुनिया में कुछ या तो इधर का होता है या उधर का होता है, सबकुछ ही। बीच का कुछ होता ही नहीं। तो कोई तुमसे कहे कि बीच में चलो, तो बीच माने क्या? दुनिया में द्वैत है। या तो स्त्री है या तो पुरुष है, बीच का क्या है? कैसे चलोगे बीच में? बताओ। या तो दिन है या तो रात है, बीच का क्या होता है? इस वक़्त तुम यहाँ हो या फिर नहीं हो। ज़रा बीच का होकर दिखाओ। बोलो।

संसार में कभी कुछ बीच का होता है, संसार में बस दो अतियाँ होती हैं। सन्त तुमको समझा गये हैं, दोनों अतियों से बचना। और संसार माने या तो ये अति या वो अति, तो माने संसार से ही बचना। क्योंकि संसार माने या तो इधर या तो उधर, और न इधर रहना है और न उधर रहना है, तो माने किधर रहना है? माने यहीं नहीं रहना है, माने वहाँ रहना है (ऊपर की ओर इशारा करते हुए)। बीच का दुनिया में कुछ नहीं होता है। अच्छा तुम न ज़िंदा होकर न मर कर दिखाओ, बीच का होकर दिखाओ, अधमरे होकर दिखाओ। हालाँकि हमारी भाषा में ऐसा शब्द आता है कि फलाना अधमरा था, पर अधमरा कभी कोई को देखा है? अधमरा माने ज़िन्दा l आधा मरा कभी कोई देखा है?

आधे कुँवारे होकर दिखाओ। अपनी समझ से बहुत लोग ऐसे ही होते हैं घर के भीतर शादीशुदा, बाहर कुँवारे। पर तुम होकर दिखाओ आधे कुँवारे। हो सकते हो क्या? दुनिया में सबकुछ या तो इधर का होता है या उधर का होता है। बुद्ध के मध्यम मार्ग को समझौतावादी सीख मत समझ लेना। व्यापार की बात नहीं है कि तुमने कहा कि ये दस का है, और ग्राहक बोल रहा है आठ का, तो तुमने कहा मध्यम मार्ग, न आपका न हमारा, बुद्ध का चलेगा, नौ। ये नहीं सिखा गये हैं बुद्ध, ये तो बाज़ार कि बात हो गयी फिर, और बुद्धों से बाज़ारू बातें नहीं मिलती। कि रेस्ट्रॉं (भोजनालय) में खाने गये। तुमने कहा तन्दूरी, बीबी ने कहा रुमाली, ये तो अजीब बात है, तो उसने कहा एक तन्दूरी और एक रुमाली ले आना, न तन्दूरी न रुमाली बीच का मामला।

अब पढ़ना ही है अगर चीन से किसी को तो लाओ त्ज़ू को पढ़ो, चुआंग त्ज़ू को पढ़ो, लीत्ज़ू को पढ़ो। तुम कहाँ फँसे हुए हो। ये ऐसी सी बात है कि जैसे कोई वेद, पुराण, कुरान न पढ़े, और चाणक्य को पढ़े। कंफ्यूजियस चीन के चाणक्य हैं। वहाँ क्या पा जाओगे? तुम्हें कूटनीति करनी है? बोलो। कंफ्यूजियस को वो पढ़े जिन्हें डिप्लोमेसी सीखनी हों, जिन्हें समाजिकता सीखनी हों, जिन्हें व्यवहार कुशलता सीखनी हों। कंफ्यूजियस सत्य के साधकों के लिए थोड़े ही हैं। चाणक्य कोई सन्त थे क्या? वही दर्ज़ा कंफ्यूजियस का है चीन में।

सून त्ज़ू और लाओ त्ज़ू में फ़र्क है, कालिदास और तुलसीदास में फ़र्क है। उससे पूँछ कर पढ़ा करो किसको पढ़ना है (ऊपर की ओर इशारा करते हुए)। प्रेम की बात जायसी ने भी करी है और रूमी ने भी करी है, पर जायसी और फरीद में कुछ फ़र्क है कि नहीं? बोलो। पूँछ कर पढ़ा करो। सर्विस करने से पहले ध्यान लगाया करो, नहीं तो डबल फॉल्ट (दोहरा दोष)।

क्या आपको आचार्य प्रशांत की शिक्षाओं से लाभ हुआ है?
आपके योगदान से ही यह मिशन आगे बढ़ेगा।
योगदान दें
सभी लेख देखें