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लेख
विज्ञान को सम्मान बिना कैसा अध्यात्म || आचार्य प्रशांत (2018)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
4 मिनट
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आचार्य प्रशांत: अध्यात्म विज्ञान का विरोधी नहीं होता, अध्यात्म विज्ञान के आगे होता है। विज्ञान से तो अध्यात्म पूरी तरह सहमत है। अगर कोई चीज़ ऐसी है जिसको विज्ञान ही नकार रहा है तो अध्यात्म उससे सहमत नहीं हो सकता।

कोई चीज़ ठीक है या नहीं, यह जानने के लिए पहले उसे विज्ञान की परीक्षा से गुज़ारो। सर्वप्रथम तो विज्ञान को सहमत होना चाहिए, फिर उसे लाओ अध्यात्म में। ऐसा थोड़े ही है कि जितने अंधविश्वास हो, रुढ़ियाँ हो, बचकानी बातें हो, बेवकूफ़ी की बातें हो, उनको अध्यात्म के नाम पर स्वीकार कर लो। कोई कह रहा है पानी का रंग बदल जाएगा, कोई कह रहा है मूर्ति दूध पी रही है।

विज्ञान की इज़्ज़त करना सीखो। चिकित्सा-शास्त्र की इज़्ज़त करना सीखो। वो बेवकूफ़ नहीं हैं जो प्रयोगशालाओं में दिन रात लगे हुए हैं अनुसंधान कर रहे हैं। उन्होंने बहुत मेहनत करके कुछ बातें पता करी हैं। और यूं हीं नहीं पता कर ली हैं अंधविश्वास द्वारा, दस बार प्रयोग करते हैं और उसके बाद भी बड़ी विनम्रता के साथ कहते हैं कि अभी हमको ऐसा पता लगा हैं, हमें जो पता लगा है वो आगे के प्रयोगों से गलत भी सिद्ध हो सकता है।

विज्ञान बहुत ईमानदार है और विज्ञान बात ही नहीं करता कि परमात्मा है या नहीं है। वो अपने जायज़ क्षेत्र की, अपनी अधिकृत क्षेत्र की सीधी बात करता है। विज्ञान पता करेगा — यह क्या है, यह क्या है, यह क्या है, यह क्या हैं, ये चांद-तारे, यह शरीर, यह सब क्या हैं। वो ठीक है बिलकुल अपनी जगह ठीक हैं।

ऐसा आदमी जो विज्ञान के ख़िलाफ़ जाता हो या जिसके मन में विज्ञान के प्रति सम्मान न हो, अध्यात्मिक नहीं हो सकता। कारण है मेरे पास — विज्ञान किसकी बात करता है? इस जगत की। जो विज्ञान को सम्मान देगा, वो जगत को समझ जाएगा न?

जब जगत को समझोगे तभी तो जगत से आगे जा पाओगे। जो जगत को ही नहीं समझा, वो जगत से ही आगे न जा पाये। और खतरा बताता हूँ — जो जगत को नहीं समझेगा कि जगत माने सब या तो तरंगें हैं या तो अणु-परमाणु हैं। जो जगत को नहीं समझेगा, उसके सामने बड़े से बड़ा खतरा यह है कि वो जगत के ही किसी खंड को, किसी विषय को, किसी टुकड़े को परमात्मा मान लेगा क्योंकि उसे तो पता ही नहीं है। अगर विज्ञान पढ़ा है तुमने तो तुम्हें पता है तुम्हें कि जो कुछ भी दिखायी देता है, अनुभव होता है, प्रतीत होता है, सुनाई देता है, वो क्या है? पदार्थ; या तो तरंगें हैं या अणु-परमाणु हैं।

तो कोई भी ऐसी चीज़ जो दृश्यगत होती हो, अनुभवगत होती हो, उसको तुम किसका दर्ज़ा नहीं दोगे अगर तुम विज्ञान के विद्यार्थी हो? परमात्मा का।

तुम कहोगे, “मैंने विज्ञान पढ़ा है मैं जानता हूँ कि जो कुछ भी अनुभव में आ सकता है वो पदार्थ है।“

पर अगर तुम विज्ञान के प्रति सम्मान नहीं रखते तो तुम ऐसी ही चीज़ों को परमात्मा मानना शुरू कर दोगे जो अनुभव में आती है। चले जाओ ऋषिकेश, वहाँ यही चल रहा है। वहाँ जितने घूम रहे हैं वो सब सत्य का अनुभव करना चाहते हैं। वो भूल जाते हैं कि अनुभव, मात्र पदार्थ का हो सकता है। इसका अनुभव हो सकता है, इसका अनुभव हो सकता है, इसका अनुभव हो सकता है — मात्र पदार्थ का अनुभव हो सकता है।

जो विज्ञान को सम्मान नहीं देते, वो परमात्मा से दूर-दूर अतिशय दूर हो जाते हैं।

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