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लेख
विज्ञान जाने, धर्म पूरा जाने || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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प्रश्न: अगर जानना धर्म है तो विज्ञान क्या है?

वक्ता: विज्ञान पूरे तरीके से धार्मिक है क्योंकि धर्म है सत्य को जानना। और विज्ञान भी सत्य को ही जानना चाहता है। लेकिन विज्ञान एक छोटी सी चूक कर देता है। समझते हैं:

एक पेंडुलम घूम रहा है। उसके चक्कर चल रहे हैं। वैज्ञानिक कि सत्य है कि “पेंडुलम घूम रहा है।” और वह उस सत्य को पेंडुलम में ढूँढेगा। नतीजा? वह पेंडुलम की आवृत्ति निकाल लेगा, समय अवधि निकाल लेगा। वह जान जाएगा कि लंबाई पर ही सब निर्भर है और वह वही सारी जानकारियां पेंडुलम के बारे में इकट्ठी कर लेगा। और वह कहेगा कि मुझे सत्य पता चल गया। अब तुम उस पेंडुलम की जगह एक पंखा भी रख सकते हो, आकाशगंगा रख सकते हो और दुनिया भर की जितनी भौतिक घटनाएँ हैं उन सबको रख सकते हो। और वैज्ञानिक कहेगा कि ‘सत्य वहां है’। और वह उसको ‘वहां’ पर तलाशेगा और सारे नियम खोज डालेगा।

लेकिन पूरी घटना सिर्फ यह नहीं है कि पेंडुलम हिल रहा है। पूरी घटना यह है कि ‘पेंडुलम हिल रहा है और तुम देख रहे हो कि पेंडुलम हिल रहा है’। अगर तुम ना कहो कि हिल रहा है तो कुछ प्रमाण नहीं है उसके हिलने का। पेंडुलम के हिलने का प्रमाण एक मात्र तुम्हारी चेतना से आ रहा है। पेंडुलम के सामने एक पत्थर को बैठा दो तो क्या पत्थर कह सकता है कि पेंडुलम हिल रहा है?

सभी श्रोता(एक स्वर में): नहीं।

वक्ता: पेंडुलम हिल रहा है, यह कहने के लिए एक चैतन्य मन चाहिए जो कह सके कि पेंडुलम हिल रहा है। वैज्ञानिक पूरी घटना नहीं देखता। वह आधी घटना देखता है। आधी घटना में क्या देख रहा है?

सभी श्रोता(एक स्वर में): पेंडुलम।

वक्ता: धर्म पूरी घटना देखता है। धर्म कहता है कि एक नहीं, दो घटनाएँ हो रही हैं। पेंडुलम हिल रहा है और चेतना देख रही है। धर्म कहता है समग्रता में देखो। तो धर्म सिर्फ बाहर ही नहीं देखता…?

सभी श्रोता(एक स्वर में): भीतर भी देखता है।

वक्ता: और विज्ञान सिर्फ बाहर देखता है। विज्ञान देखेगा तो पेंडुलम को देखेगा। धर्म देखेगा तो कहेगा “पेंडुलम है और मन है।” मन को भी समझना आवश्यक है। तो विज्ञान धार्मिक है, पर आधा धार्मिक है। पूरा धर्म हुआ, उसको जानना और मन को जानना।

-‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

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