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लेख
वह छोटे से छोटा है, और बड़े से बड़ा || आचार्य प्रशांत, यीशु मसीह पर (2014)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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“The kingdom of heaven is like a mustard seed that a man planted in his field. Although it is the smallest of all seeds, yet it grows into the largest of garden plants and becomes a tree so that the birds of the air come and nest in its branches.”

Mathew (13:31, 13:32)

“वह सब बीजों से छोटा तो है पर जब बढ़ जाता है तब सब साग पात से बड़ा होता है; और ऐसा पेड़ हो जाता है, कि आकाश के पक्षी आकर उस की डालियों पर बसेरा करते हैं॥”

मैथ्यू (13:31, 13:32)

आचार्य प्रशांत: जीसस कह रहे हैं कि वो सूक्ष्म-अतिसूक्ष्म है। सत्य, सूक्ष्म, अतिसूक्ष्म है, छोटे से छोटा है, और दूसरी दृष्टि से देखें तो बड़े से बड़ा है, जीसस ने दोनों दृष्टियों की चर्चा एक ही वचन में कर दी है। यही काम उपनिषद् भी करते हैं, “अणोरणीयान् महतो महीयान्” और बात आगे बढ़ाते हैं – छोटे से छोटा, बड़े से बड़ा है। अपने होने में वो इतना सूक्ष्म, इतना विरल है, कि दिखाई ही नहीं देगा, पकड़ में नहीं आएगा। और अपने प्रभावों में वो इतना वृहद है, कि उसके अलावा कुछ है नहीं जो दिखाई दे।

बात समझो।

तुमसे कहा जाए, “जाओ, सत्य को खोज कर ले आओ। ये चारों तरफ तुम्हें पेड़-पौधे, जंगल अभी दिख रहे हैं, ये पानी है, और हवा है, इसमें जाओ सत्य को खोज कर ले आओ।” तो तुम कर लो खूब खुदाई, तुम छान लो पानी को, तुम्हें नहीं मिलेगा। और तुम वापस आ जाओगे। इतना सूक्ष्म है इतना विरल है, सब कुछ देख लिया, खोद लिया, छान लिया, खोज लिया, नहीं पाया, और फिर आ करके बैठोगे, और अपने चारों ओर देखो, तब कहोगे, “उसके अलावा और है क्या?”

सूक्ष्म इतना, कि पकड़ में न आए, और वृहद इतना कि उसके बाहर कुछ नहीं। ठीक वही बात यहाँ पर कह रहे हैं जीसस कि एक छोटे से छोटे बीज की तरह है, जो समस्त बीजों में सबसे छोटा हो। पर वो ऐसा है कि जब उसे बो दिया, तो उससे जो वृक्ष पैदा होता है, उससे बड़ा कोई वृक्ष नहीं और उस वृक्ष में आ कर के, अस्तित्व पूरा शरण लेता है। जीसस तो इतना ही कह रहे हैं कि आकाश के पक्षी आ कर के उसमें घोसला बनाते हैं, आकाश के पक्षी ही नहीं, ज़मीन के पशु भी, और मनुष्य भी, सब उसमे शरण पाते हैं। छोटे से छोटा है, और बड़े से बड़ा है। और ये वो दोनों अतियाँ हैं जिन्हें हम पकड़ नहीं सकते।

एक सीमा से कुछ छोटा हो जाए, किसी और आयाम में पहुँच जाए, हम उसे नहीं पाएँगे। और कुछ ऐसा हो जाए, जो बिल्कुल ही असीम है, तो भी हम उसे नहीं पाएँगे।

आदमी की मजबूरी ये है कि देख पाने के लिए, अस्ति कह पाने के लिए, उसे सीमाएँ चाहिए। जिसकी सीमा नहीं, आदमी को उसका संज्ञान भी नहीं मिल सकता। जो सूक्ष्मतम हो गया, वो भी असीम हो जाता है, क्योंकि उसकी अब कोई सीमा नहीं बची, बिंदु की कोई सीमा नहीं होती, और जो वृहदतम हो गया, वो भी असीम हो गया, क्योंकि अनंत की कोई सीमा नहीं होती। आदमी दोनों को ही नहीं जान सकता। आदमी तो बीच का है, जो सीमाओं के भ्रम में जीता है।

जीसस कह रहे हैं, “समझो, समस्त जीवित सीमित हैं।” जब जीसस कह रहे हैं कि सारे पक्षी आकर के उस वृक्ष में प्रश्रय लेंगे, तो वो कह रहे हैं सीमित सदैव असीमित में ही सहारा पाएगा। सीमित को सीमित का सहारा नहीं हो सकता, दूसरे शब्दों में वो ये कह रहे हैं कि संसारी का सहारा कभी संसार नहीं हो सकता। संसार, संसार के सहारे पर न चल पाएगा। संसार को अगर चलना है, तो उसे सत्य का ही सहारा चाहिए। सत्य के बीज से जो पेड़ उदित होता है, उसी में पनाह पाएँगे सारे पक्षी, सारे पशु, और तुम। बात समझ रहे हो? आदमी, आदमी का सहारा न बन पाएगा। तुम कुछ कर लो, आदमी से आस जोड़ोगे, आस टूटेगी। और हर आस, हर टूटी हुई आस, तुम्हारे दिल को एक नया घाव दे कर के जाएगी।

आदमी के साथ चलोगे, साथ छूटेगा। हर छूटा हुआ साथ एक और घाव बन जाएगा। उसका साथ पकड़ो जो निभाएगा, उसकी प्रीत करो, उसका सहारा मांगो। उसके साथ रह कर कभी धोखा नहीं खाओगे। अपने आप को उसके हवाले छोड़ो। उसी का पेड़ है, जिसमें तुम्हारा घर बनेगा। अभी हम घर की बात कर रहे थे ना? उसी का पेड़ है जिसमे तुम्हारा घोंसला बड़े आराम से बनेगा, तैयार ही बैठा है, बस तुम्हे जाकर के उसमे समा जाना है। आ रही है बात समझ में?

ये पीछे (एक चर्च कि ओर इशारा करते हुए) क्रॉस है, इसका मतलब समझते हो क्या है? इसका मतलब ठीक वही है जो अभी कह रहा था। डोडो (पक्षियों की एक विलुप्त प्रजाति) हो जाना बेहतर है, जीसस डोडो हो लिए। ये जो सूली है, ये जीसस की मौत की कहानी है। इसी पर लटके थे ना? लटकना बेहतर समझा उन्होंने, और जवान आदमी थे, अभी पूरी उम्र पड़ी थी जीने के लिए। उन्होंने कहा, “ठीक, इसपर लटकना बेहतर है, पर तुम्हारे जैसा होना स्वीकार नहीं करूँगा।”

मस्त, मगन, बुद्धिमान, श्रद्धावान, खूबसूरत नौजवान थे, थोड़ा सा समझौता कर लेते तो क्या बिगड़ जाता? माफ़ी माँग लेते, कह देते, “नशे में गलत बोल गया।” क्या बिगड़ जाता? कह देते, “बहक गया था, यूँ ही ऊटपटांग बोलने लग गया था।” नहीं, उन्होंने कहा, “लटका दो, कोई बात नहीं।” और ये भी उन्होंने हिंसा में नहीं कहा कि लटका दो, कोई बात नहीं, अकड़ में नहीं कहा, बड़े सहज, सरल तरीके से कहा कि तुम्हें अगर यही उचित लगता है तो करो यही। मुझे तो दिख रहा है कि ये उचित नहीं है। पर अब जो वो चाहे, पिता कि यही मर्ज़ी है, तो यही ठीक। और उससे मैं यही कहूँगा कि तुम्हें भी माफ़ करे, क्योंकि तुम समझ ही कहाँ रहे हो कि तुम कर क्या रहे हो।

इसको ध्यान से देख लो और समझ लो। उस राह चल कर अगर इस तक पहुँचते हो, तो परम सौभाग्य है तुम्हारा। ये जीसस के कष्ट के चिन्ह का चिन्ह नहीं है, ये जीसस के अमर हो जाने का चिन्ह है। इसको देख कर ये मत याद करना कि जीसस इसपर तड़पे थे, ये याद करना कि जब इसपर भी थे, तब भी मन आनंदित था। आनंदित न होता, तो टूट गए होते। जब इस पर भी थे, तब भी मन में श्रद्धा अडिग रही, अडिग न रहती तो रो पड़े होते।

उन्होंने ये नहीं कहा कि ये क्या सिला मिल रहा है मुझे? मैंने तो दुनिया का भला चाहा, दुनिया को ऊँची से ऊँची बात कही, और ये क्या मिल रहा है मुझे? ना, बिलकुल नहीं कहा। दुनिया से किसी प्रतिफल की अपेक्षा ही नहीं थी उन्हें। कुछ मांग ही नहीं रहे थे। मैंने वो करा, मैं वो कर रहा हूँ जो उचित है, बाकी तुम जानो। और मैं जा भी रहा हूँ, तो अपने वचन को छोड़ के जा रहा हूँ पीछे, अपनी सीख, अपना जीवन छोड़ के जा रहा हूँ पीछे, दे के ही जा रहा हूँ। अस्तित्व ऐसा ही है। इसको भूलना मत।

हम जिस तरीके से चले हैं, इंसान की जो पूरी यात्रा रही है, वो ऐसी ही रही है, और हम ऐसे ही हो गए हैं कि जीसस जब भी आएगा, उसको यही भेंट दी जाएगी। पर ये भेंट कष्ट की नहीं है। जो जीसस को जानते नहीं सिर्फ वही कहेंगे कि बुरा हुआ। न, जो जीसस को जानते नहीं सिर्फ वही ये कहेंगे कि जीसस ने अपनी कुर्बानी दे दी, न, कैसी कुर्बानी? जैसे ये चिड़िया गा रही है ना मौज में, जीसस इतनी ही मौज में इसपर चढ़ गये थे।

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