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लेख
स्वयं सुधरो, दुनिया अपनेआप सुधर जाएगी || महाभारत पर (2018)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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प्रश्नकर्ता: जब मेरा बुरा वक़्त था, तो मेरे साथ किसी ने बहुत अभद्र व्यवहार किया और मेरी तकलीफ़ बढ़ाई। और आज भी जब मेरी ज़िंदगी आगे बढ़ रही है, तो वह मुझे अप्रत्यक्ष रूप से ताना मार रहा है। दूसरों के सामने वह स्वयं को बहुत अच्छा दर्शाता है और दिल जीतता है। तो क्या मुझे उस इंसान से आगे रिश्ता रखना चाहिए? और अगर वो मेरे परिवार का ही हिस्सा है, तो मुझे किस तरह से और क्या सोच रखनी चाहिए? और किस तरह से आगे बढ़ना चाहिए?

आचार्य प्रशांत: देखो, जैसे तुम रहे आए हो, अगर वैसे ही तुम रहे, तो आगे तुम्हारा उस व्यक्ति से रिश्ता भी वैसा ही रहेगा। मैं यहाँ यह मान रहा हूँ कि वह व्यक्ति भी नहीं बदलता। कोई अगर तुम पर हुक्म चलाता था, या तुम्हें ताना मारता था, या तुम्हें डराता था, या तुम्हें चोट पहुँचाता था, तो ज़ाहिर-सी बात है कि तुम कमज़ोर थे, तभी तो तुम्हें चोट लगी।

प्रश्न उस व्यक्ति का नहीं है। प्रश्न यह नहीं है कि तुम उससे संबंध रखो कि ना रखो इत्यादि; प्रश्न केंद्रीय रूप से यह है कि “क्या तुम अभी भी कमज़ोर हो और कमज़ोर बने रहना चाहते हो?”

तुम कुछ और हो जाओ, तुम निखर जाओ, तुम चमक जाओ, तुम लोहे से कंचन हो जाओ, क्या तब भी उस व्यक्ति का रवैया तुम्हारे प्रति वही रहेगा जो अभी है?

अपने हर प्रश्न के केंद्र पर ख़ुद को रखा करो, संसार को नहीं। संसार पीछे आता है, पहले तुम आते हो न। तुम वो हो जाओ जो तुम्हें होना ही है, तुम उधर को बढ़ जाओ जिधर बढ़ना तुम्हारा स्वभाव है, जिधर बढ़ने में हित है तुम्हारा—उस व्यक्ति का रवैया, बर्ताव इत्यादि स्वयं बदलेगा। और अगर नहीं बदलता, मान लो कि वो बड़ा जड़ है, बड़ा मूर्ख है, तो भी वो तुम्हें कोई फिर नुकसान नहीं पहुँचा पाएगा। तुम ऐसे हो चुके होओगे कि किसी की मूर्खताएँ या किसी की हिंसा फिर तुम पर कोई असर नहीं छोड़ेंगी।

तुम आगे बढ़ो, दुनिया अपने-आप सुधर जाएगी।

प्र: क्या आगे चलकर वो इंसान विश्वासपात्र रहेगा?

आचार्य: देखो, डरे हुए आदमी को विश्वास करना पड़ता है। विश्वास का अर्थ होता है कि अभी ठीक-ठीक जाना नहीं, मान्यता रखनी पड़ रही है।

जो निडर हो गया, जो स्वभाव में पहुँच गया, उसे विश्वास इत्यादि करने नहीं पड़ते न। वो जाँच लेगा और जान जाएगा। वो क्यों विश्वास करेगा? उसके पास आँख होगी न। वो देख लेगा और समझ जाएगा, विश्वास क्यों करेगा? और वो पहले से ही क्यों मान्यता बनाएगा कि, "दूसरे पर विश्वास करूँ, या ना करूँ?" वो कहेगा, “मामला प्रत्यक्ष है, अभी पता चल जाता है।”

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