आचार्य प्रशांत आपके बेहतर भविष्य की लड़ाई लड़ रहे हैं
लेख
शादी की खुशखबरी कब सुनाओगे? || (2019)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
11 मिनट
106 बार पढ़ा गया

प्रश्नकर्ता: (प्रश्नकर्ता ने अपना प्रश्न आचार्य जी तक मोबाइल में सन्देश के ज़रिए पहुँचाया था) प्रणाम आचार्य जी, मुझमें अपराध भाव बढ़ता जा रहा है, मैं शादी नहीं करना चाहता। जो भी मेहमान घर पर आते हैं वह कहते हैं कि, "शादी की खुशख़बरी कब?" सब के अनुसार शादी और बच्चे होने के बाद मेरी माँ की तबीयत सही हो जाएगी और जीवन लंबा हो जाएगा। शादी मैं बिलकुल नहीं करना चाहता हूँ और यह लगता भी है कि अगर मेरी माँ बच्चों के बीच रहेगी तो शायद उनका समय अच्छा बीतेगा और तबीयत बेहतर हो जाएगी। इस द्वंद्व के कारण मेरा अंतःकरण बिलकुल टूटा हुआ रहता है और कोई प्रगति जीवन में दिखाई नहीं देती। प्रेम की बात जो अध्यात्म में की जाती है, वह मैंने अभी तक जाना नहीं है, पर मुझे ऐसा लगता है कि बिना उसके कोई भी संबंध कुछ महीनों से ज़्यादा नहीं चल सकता। ऐसी स्थिति में क्या करें?

आचार्य प्रशांत: माँ को किसी प्ले स्कूल में नौकरी दिलाओ, बेटा। वहाँ बच्चे-ही-बच्चे मिलेंगे। तुम तो बहुत लंबा रास्ता अख्तियार कर रहे हो, शादी करोगे फिर आजकल पता नहीं महिलाओं की फर्टिलिटी (प्रजनन क्षमता) कम होती जा रही है, पुरुषों की वायरिलिटी (प्रजनन क्षमता) कम होती जा रही है, बच्चा भी हो, ना हो, हो भी तो कितने सालों में हो, उतने दिन तक माँ का क्या भरोसा! तुरंत वाला काम करो। कल ही से सुबह ले जाकर के माँ को किसी प्ले स्कूल में छोड़ आया करो। तुम्हारा ही कहना है कि बच्चों के बीच रहेंगीं तो स्वास्थ्य लाभ हो जाएगा।

किसको बेवकूफ बना रहे हो भाई? किसको बेवकूफ बनाया जा रहा है ये? क्या बात है असली, कामोत्तेजना बड़ी हुई है, बीवी चाहिए? क्यों इधर-उधर की बात करते हो कि मेहमान आकर के दबाव बनाते हैं कि शादी कर लो। यही मेहमान कहेंगे कि ज़हर खा लो, खा लेते हो? मेहमानों के कहने से भी काम तुम वही करते हो जो तुम्हें करना है। सीधे कहो कि तुम्हें करना है, तो कर डालो कौन मना कर रहा है?

सब शादी करते हैं, तुम भी कर डालो, बातें क्यों बना रहे हो? माँ को बच्चे चाहिए, और बच्चे ना हों तो? हो ही जाते हैं? अपनी जाँच-पड़ताल कराई है? बड़ी समस्या है दुनिया में, आवो-हवा ऐसी हो गई है, जलवायु ऐसी है, खाना-पीना ऐसा है स्पर्म काउंट गिरता ही जा रहा है। और जिन देवी जी से शादी करोगे तुम्हें पक्का है कि वो बच्चों में उत्सुक ही होंगी? आज की लड़कियाँ पहले वाली तो हैं नहीं कि तुमने गाय बना दिया और वो बन गईं, हसबैंड (पति) बनकर तुमने बैंड बजा दिया और बछड़ा पैदा हो गया।

ये चल क्या रहा है कि माँ को बच्चे मिलेंगे तो उनका स्वास्थ्य अच्छा होगा इसीलिए मैं शादी करूँगा, फिर एक स्त्री को गर्भ दूँगा, फिर वह संतान पैदा करेगी, वह संतान माँ के पास दूँगा। एक संतान से माँ के स्वास्थ्य में इतना लाभ होता है तो बहुत सारे बच्चे होने चाहिए। मैंने कहा प्ले स्कूल या फिर किसी अनाथ आश्रम इत्यादि में माँ जाएँ सेवा वगैरह करें। सेवा करने से बड़ा लाभ मिलता है, स्वास्थ्य लाभ भी मिलता होगा।

कैसी ज़िंदगी है कि मेहमान आ करके तुमको डिगा जाते हैं, कँपा जाते हैं, हिल-डुल जाते हो। सुनो मेरी बात ध्यान से, अगर अभी तक सुन रहे हो तो। संभावना यह भी है कि मेरी बात तुम्हें ऐसी लट्ठ जैसी लगी होगी कि तुमने सुनना अब तक बंद ही कर दिया हो। पर अगर अभी सुन रहे हो तो सुनो: अगर तुम ऐसे हो — प्रश्नकर्ता की उम्र क्या है? छत्तीस। वरिष्ठ हैं भाई आप, मुझे लगा मैं किसी बाईस-चौबीस वाले से बात कर रहा हूँ। छत्तीस में भी यह बातें कर रहे हो। छत्तीस के हो गए और बातें यह हैं कि मेहमान आकर के छेड़ जाते हैं, गेस्ट मॉलेस्टेशन (अतिथि उत्पीड़न) — अगर जीवन ऐसा है कि जिसमें मेहमान आते हैं और इस तरह की बात करते हैं तो जीवन ही ठीक नहीं है, बेटा। नहीं, बेटा क्या, इतना बुड्ढा थोड़े ही हूँ मैं (सामूहिक हँसी)। आप तो हम उम्र हुए हमारे।

कैसे हो पाता है यह? यह तो गुड्डे-गुड़ियों के साथ होता है, ये तो किशोरों के साथ होता है कि मेहमान आते हैं और कहते हैं कि, “अब की बोर्ड (परीक्षा) में कितने ला रहे हो? देखो पप्पू भैया के ब्यानवे-प्रतिशत आए थे, तुम्हारे तिरानवे आने चाहिए कम-से-कम।” ये किशोर हैं अभी, इनकी दाढ़ी मूछ आई नहीं है, और वो बिलकुल दबाव में आ गया। अब बोर्ड आ रहे हैं। बताया गया है कि पप्पू भैया के ब्यानवे आए थे, बिलकुल प्रेशर (दबाव) में आ चुका है कि तिरानवे तो लाना-ही-लाना है, नाम अखबार में छप जाएगा, नहीं तो पूरे कुनबे की इज़्ज़त डूब जाएगी।

मैं आगे ही नहीं बढ़ पा रहा हूँ, मैं यहीं पर अटक गया। मेहमान आकर बोल जाते हैं ये सब? होते कौन हैं मेहमान ये सब बोलने वाले? और आप कैसे हैं कि आपने इस कोटि के मेहमान आमंत्रित कर रखे हैं? ऐसे मेहमानों को घर में घुसने क्यों दे रहे हो? पर फिर संभावना ये है कि शायद तुम अपने घर में रहते भी नहीं हो, घर भी पुश्तैनी है। तो फिर घर में कौन घुसेगा, कौन नहीं घुसेगा, इस पर भी तुम्हारा कोई हक़ तो है नहीं। तो कोई भी घुसता है, तुम्हें छेड़ कर चला जाता है।

आप शादी करें ना करें, वह आपका निजी मसला है, पर मेहमानों के कहने से करेंगे या नहीं करेंगे, तब तो यह बात बड़ी शर्मिंदगी की है। मैं बिलकुल नहीं कह रहा कि मत करिए शादी, कर लीजिए ठीक है। पर इसलिए शादी करेंगे कि बच्चा पैदा करूँगा, माँ को खिलौना दूँगा, तो यह बात बड़ी नासमझी की है।

हाँ, शादी से बच्चा पैदा यूँ ही करना हो तो कर लो, उसमें क्या है, इतने लोग शादी कर रहे हैं बच्चा पैदा कर रहे हैं। और जो बच्चे खेल-खिलौने माँगते हैं, अक्सर उनका मन एक खिलौने से भरता नहीं है। माँ भी अगर इतनी बच्ची हैं कि उनको खिलौने की तरह बच्चा चाहिए, तो यह पक्का समझ लो कि एक खिलौने पर वह रुकने नहीं वाली। वो कहेंगी कि खिलौनू आ गया, अब खिलौनी चाहिए। या कि बड़ा खिलौनू आ गया है, उसमें ऊ की मात्रा है, अब छोटा खिलौनु चाहिए, उ की मात्रा वाला। खिलौनू अकेला है। और बड़े तर्क आते हैं कि तुम दोनों तो अपने-अपने काम में व्यस्त हो जाओगे फिर ये बेचारा अकेला रह जाएगा न। अब तुम फँसोगे, कहोगे कि, "अभी तक माँ के अकेलेपन का सवाल था, अब खिलौनू भी अकेला हो गया है तो उसको खिलौनी लाकर देनी है।"

बच्चे इतने ही अगर पसंद हैं — मुझे भी अच्छे लगते हैं — तो गोद क्यों नहीं ले लेते भाई? तुम जैसे लोग अगर बच्चे गोद लेने को तैयार हो जाएँ तो भारत में भ्रूण हत्या रुक जाए। इतनी औरतें अपनी बच्चियों को मार देती हैं, अगर लोग तैयार हो जाएँ बच्चियों को गोद लेने को तो कम-से-कम मारने की ज़रूरत ना हो। वो कहेगीं कि, "मारें इससे अच्छा किसी को दे ही आते हैं।" लड़कियाँ मारी सिर्फ़ इसलिए नहीं जातीं कि उनके माँ-बाप को वह स्वीकार नहीं हैं, लड़कियाँ मारी इसलिए जाती हैं क्योंकि वह समाज को ही स्वीकार नहीं हैं। वह लड़की, वह बच्ची, वह अजन्मी बच्ची या वो सद्योजात बच्ची अपने ही घर में अस्वीकार्य नहीं थी, वो शहर के हर घर में अस्वीकार्य थी, इसलिए उसकी हत्या हुई। अगर कुछ घर होते ऐसे जो उसे अपना लेते, तो उसकी हत्या नहीं होती न। दो बच्चियाँ गोद ले लो।

भारत कहने को उन्नत और आधुनिक हो गया है, पर छोटी लड़कियों की अभी बड़ी दुर्दशा है। ख़ासतौर पर निचले तबको में जहाँ अशिक्षा बहुत है, जहाँ आय कम है।

लेकिन अगर मेहमानों की सुनोगे तो गोद कभी नहीं ले पाओगे। क्योंकि, बात समझना, मेहमानों को इस बात से मतलब ही नहीं है कि तुम्हारे बच्चा हो रहा है या नहीं, उनका असली प्रयोजन यह है कि तुम फँसो। गोद ले लोगे तो फँसे नहीं न, तो मेहमान निराश हो जाएँगे।

अभी वो तुमसे यह कह रहे हैं कि शादी कर लो ताकि घर में बच्चे हों, ताकि माँ का दिल लगा रहे और माँ की तबीयत ठीक रहे। पर तुम वही बच्चे गोद ले आ लो तो मेहमान निराश हो जाएँगे, फिर तुम पूछना कि, “आप निराश क्यों हो रहे हैं? आप तो बड़ा लंबा रास्ता बता रहे थे, मैं शॉर्टकट से बच्चे ले आया।” वो निराश हो जाएँगे, कहेंगे, “नहीं, नहीं, ये वाले बच्चे नहीं।” तो पूछना, “कौन से वाले?” वो कहेंगे, “वो वाले, वो वाले।” “कौन से वाले?” “वो जो वैसे होते हैं।” “तुम्हें ऐसे-वैसे से क्या मतलब? सब बच्चे एक ही तरीके से होते हैं, न आसमान से गिरते हैं, न पेड़ों पर लगते हैं।” फिर वो तुम्हें बताएँगे “नहीं, अपना खून होना चाहिए।”

पहली बात तो ये अशिक्षित हैं, इन्हें यह भी नहीं पता कि बच्चा खून से नहीं, वीर्य से होता है। जाने इनका खून ही निकल आया था इतना कि सोचते हैं कि बच्चा खून निकलने से पैदा हुआ था।

ये कुछ मुहावरे भी हमारी जहालत को दर्शाते हैं — ‘अपना खून’, अपना खून माने क्या? बोलो, ‘अपना वीर्य, अपना अंडा’। पर वो बोलोगे नहीं क्योंकि वह बात नंगी है, सच्चाई को बिलकुल बेपर्दा कर देती है, दिखा देती है कि तुम सत्यवादी नहीं, वीर्यवादी हो। तो फिर कहेंगे, “नहीं, नहीं, नहीं, बच्चा गोद नहीं लेना चाहिए, अपना खून होना चाहिए।”

अपना-पराया क्या खून होता है? कभी बीमार हुए हो, कभी खून चढ़ा है तुमको? जो तुम्हारे ब्लड-ग्रुप से मैच कर जाए, वही तुम्हारा खून है। अपना पराया क्या होता है भाई? और तुम्हारे ही बेटे का खून तुमको नहीं चढ़ाया जा सकता अगर तुम बी-पॉज़िटिव हो और वह नहीं है। "अपना खून, अपना खून।" तुम्हारे ही बेटे का खून तुमको नहीं चढ़ाया जा सकता, अधिकांश मामलों में यही होता है। अपना खून कैसा? पर अपने खून का नारा लगा लगा कर, लगा लगा कर जितनी गंदगी हो सकती है सब करी जाती है।

मैंने कड़वी बातें बोली हैं अभी। मेरा ध्येय यह नहीं है कि तुम्हें किसी एक निर्णय की तरफ ही प्रेरित करूँ। मुझे बस आपकी बात से ये समझ में आ रहा है कि यह माहौल ठीक नहीं है। अपनी जो हालत बना रखी आपने, वो हालत ठीक नहीं है। सच से बहुत दूर हो इसीलिए माया के जितने एजेंट हैं तुम पर हावी हो रहे हैं। हालत तुमने यही बनाई रखी तो चाहे तुम शादी करो, चाहे नहीं करो, परेशान ही रहोगे, तड़पते ही रहोगे।

अपनी हालत को बदलो। घर पर उनको मेहमान करो जिनके आने से घर में उजाला हो, अँधेरे के गुर्गों को क्यों घुसने देते हो घर में? घर में जो चल रहा है वह ठीक नहीं चल रहा।

आज कहा गया था कि जितने भी लोग हैं जो कभी भी मुझसे संपर्क में रहे हैं, वो अपने सवाल भेज सकते हैं। उसमें यह तो नहीं कहा गया था न कि वह यहाँ बोधस्थल में आकर के, रूबरू होकर प्रश्न नहीं पूछ सकते?

कहाँ के रहने वाले हैं यह?

स्वयंसेवी: दिल्ली के।

आचार्य: दिल्ली के ही हो तो यहीं आ जाया करो भाई। ना बहुत वक़्त लगेगा, ना रुपया पैसा। सामने ही बैठ जाया करो। उन मेहमानों से बचने के लिए यहाँ मेहमान हो जाया करो, हम आतिथ्य में कोई कमी नहीं रखेंगे। हो सके तो माँ को भी साथ लाना, छोटे-छोटे खरगोश हमारे पास बहुत हैं।

क्या आपको आचार्य प्रशांत की शिक्षाओं से लाभ हुआ है?
आपके योगदान से ही यह मिशन आगे बढ़ेगा।
योगदान दें
सभी लेख देखें