आचार्य प्रशांत आपके बेहतर भविष्य की लड़ाई लड़ रहे हैं
लेख

सत्य किसको चुनता है? || आचार्य प्रशांत, गुरु नानकदेव पर (2014)

Author Acharya Prashant

आचार्य प्रशांत

4 मिनट
42 बार पढ़ा गया
सत्य किसको चुनता है? || आचार्य प्रशांत, गुरु नानकदेव पर (2014)

वक्ता: नानक कई बार कहते हैं कि वो जिसको चुनता है उसी पर अनुकम्पा होती है। तो सवाल है कि वो किसको चुनता है। हम इसपर कई बार बात कर चुके हैं।

वो किसको चुनता है?

श्रोतागण: जो उसी की तरफ़ जाता है। जो उसको चुनता है।

वक्ता: हाँ। ज़्यादा अच्छा यह है ‘जो उसको चुनता है’। चुनने का काम उस तरफ़ से नहीं होता। इस बात को हम कई बार दोहरा चुके हैं। तो अच्छे से पकड़ लो न। वो नहीं चुनता किसी को। हाँ! तुम जो चुनाव करते हो, उस चुनाव की ताकत भी तुम्हें उससे मिली है। पर उसकी अपनी कोई रुची नहीं है चुनने में। उसने तुम्हें दे दिया है ‘लो, यह चुनने-चुनाने का सारा काम तुम करो। हमारी ओर से जो है वो तो पूरा है। हम अकर्ता हैं, हमें कुछ करना नहीं। कर्ताभाव तुम्हें मुबारक हो। हम परम कर्ता होते हुए भी अकर्ता हैं। बाकी सब यह निर्णय लेना, इधर जाना, उधर जाना, क्या करना है, इसे स्वीकार करना, उसे अस्वीकार करना; तुम करो, हम नहीं करते। तुम चुनो। ताकत तुम्हारे हाथ में है।’

हमने बात करी हुई है न कि ‘द फ्रीडम टू बी इज़ ऑल योर्स’ (होने की आज़ादी तुम्हारी है)। तुम्हें निर्णय लेना है। वो निर्णय नहीं लेगा।

श्रोता २: तो फ़िर ग्रेस (अनुकम्पा) कुछ नहीं होता?

वक्ता: अभी जो पूरी बात बोली उसमें ग्रेस कहाँ है? कहाँ है ग्रेस?

श्रोता ३: चुनने की क्षमता ही ग्रेस है।

वक्ता: सुनातो करो न पहले। तुम्हें चुनने की ताकत मिली है, यह तुम्हारी अपनी कमाई हुई है? तुम्हें चेतना जो है, जो समझती है, जो जान सकती है, यह ताकत तुम्हारी अपनी है? अब तुम उसको अन्डक-बन्डक कर दो। चुनने की ताकत है, पर तुम उसको कुँए में डाल आओ। गाड़ी चलानी तुम्हें आती है पर तुम दारु पी कर गाड़ी चलाओ तो इसका मतलब यह है कि जिसने तुम्हें गाड़ी उपहार में दी थी उसने तुम्हारा ऐक्सीडेंट कराया?

तुम्हें एक गाड़ी उपहार में दी गयी और तुम बिलकुल तंग हो कर के उसमें जा कर के बैठ गए और जा कर के भिड़ा आए। और शुभांकर (श्रोता को संबोधित करते हुए) बोल रहा है ‘ग्रेस नहीं थी। ऐक्सीडेंट-प्रूफ़ गाड़ी नहीं दी।’

उसने तुम्हें गाड़ी दे दी है और उसने तुम्हें यह भी ताकत दे दी है कि दारू पी कर भी चला सकते हो और होश में भी चला सकते हो। तुम तंग हो कर दारू पियो जब गाड़ी चला रहे हो, तो ठीक है, तुम्हारी मर्ज़ी है!

वो सभी को वयस्क रूप में देखता है।

(श्रोतागण हँसते हैं)

कहता है भई तुम्हें पूरी आज़ादी है। तुम अपनी हड्डी तोड़ना चाहते हो, तुम्हें पूरी आज़ादी है। यकीन जानो तुम अगर अभी जा कर के यहाँ ऊपर से नीचे छलांग लगाओ तो कोई ग्रेस तुम्हें रास्ते में रोकेगी नहीं।

श्रोता ४: छलांग ही ग्रेस है।

वक्ता: यही ग्रेस है कि तुम्हें पूरी आज़ादी थी कि तुम कूदना चाहते हो, तुम कूद सकते हो। बिलकुल मत सोचना कि ख़ुदा का हाथ आएगा और तुम्हें थाम लेगा रास्ते में। ना! कभी ना ऐसा हुआ है, ना होगा। यह तुम्हें दी हुई आज़ादी का हिस्सा है। कि अगर तुमने तय कर लिया है कि मुझे तीसरी मंज़िल से कूदना है, तो तुम कूदो। और हम तुम्हें बिलकुल नहीं रोकेंगे। ‘वो तुम्हें वयस्क रूप में देखता है’। भई तुमने तय किया है, तुम जानो! बस परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना।

~ ‘शब्द योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

YouTube Link: https://youtu.be/ivSUXwvFQKw

GET UPDATES
Receive handpicked articles, quotes and videos of Acharya Prashant regularly.
OR
Subscribe
सभी लेख देखें