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लेख
सत्य का गहरा व सूक्ष्म स्मरण || आचार्य प्रशांत, संत मलूकदास पर (2014)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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दोहा:

सुमिरन ऐसा कीजिए, दूजा लखे न कोय | ओठ न फरकत देखिए, प्रेम राखिए गोय || ~ संत मलूकदास

प्रसंग:

  • सत्य की याद दुःख में ही क्यों सताती है?
  • सत्य को निरंतर कैसे याद रखें?
  • झूठ से आसक्ति कैसे हटायें?
  • संतों के क़रीब आने का क्या तरीका है?
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