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सच एक है, पर व्यक्तियों के चुनाव अलग-अलग हैं || आचार्य प्रशांत, परमहंस गीता पर (2020)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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क्षेत्रज्ञा आत्मा पुरुषः पुराणः साक्षात्स्वयंज्योतिरजः परेशः। नारायणो भगवान् वासुदेवः स्वमाययात्मन्यवधीयमानः।।

यह क्षेत्रज्ञ परमात्मा सर्वव्यापक, जगत का आदिकारण, परिपूर्ण, अपरोक्ष, स्वयंप्रकाश, अजन्मा, ब्रह्मादि का भी नियन्ता और अपने अधीन रहने वाली माया के द्वारा सबके अन्तःकरणों में रहकर जीवों को प्रेरित करने वाला समस्त भूतों का आश्रयरूप भगवान् वासुदेव है ।

~ परमहंस गीता (अध्याय २, श्लोक १३)

प्रसंग:

  • ईश्वर की अभिव्यक्ति और दिशा में अंतर क्यों है?
  • जब परमात्मा सभी जीवों के भीतर विद्यमान हैं तो यह सभी में एक जैसी क्यों नहीं है?
  • जब सभी लोगों में एक ही प्रेरणा संचारित है तो फिर संगती पर इतना जोर क्यों दिया जाता है?
  • चुनौती को कैसे स्वीकार करें?

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