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लेख
सब दोस्त-रिश्तेदार ऐसे ही हैं न? || नीम लड्डू
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
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बहुत लोग मिलेंगे कहेंगे, "अरे, अरे! बहुत बड़ी बातें मत करो, हमें समझ में नहीं आती हैं। यह तुम क्या गीता उपनिषद् लेकर बैठ जाते हो, भइया! हम बड़े सीधे, सरल आदमी हैं, हमें यह सब बातें समझ में नहीं आती; आलू, टिंडा बताओ न?"

जो कोई तुमसे यह बोले कि उसको गीता उपनिषद् समझ में नहीं आते, समझ लेना वह बहुत ख़तरनाक आदमी है, वह बहुत पहले समझ चुका है गीता उपनिषद् में क्या लिखा है। और जो कुछ उसने समझा है, वह उसके घोर विरोध में खड़ा हुआ है। क्योंकि अगर वाकई किसी के समझ में नहीं आएगा तो वह क्या करेगा? वह समझना चाहेगा। वह तो दोगुने उत्साह से प्रवेश करेगा, वह कहेगा, “समझ में नहीं आयी बात, समझाओ, समझाओ!“

सब नात, रिश्तेदार, दोस्त-यार ज़्यादातर ऐसे ही हैं न? उनके बीच आप बैठ जाएँ और कोई दोहा कह दें, कोई श्लोक कह दें तो वह सब तत्काल ख़फ़ा हो जाएँगे। शराब पी रहे होंगे तो नशा उतर जाएगा, खाना खा रहे होंगे तो ज़ायका ख़राब हो जाएगा। ऐसे ही लोग हैं न? ऐसे ही लोगों के साथ रह रहे हो न?

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