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लेख
ओम् है शब्द का मौन में विलीन हो जाना || आचार्य प्रशांत (2016)

प्रश्न : मैं ये जानना चाह रहा था की जैसे “ओम्” जो है और जैसे आपने बताया की ‛मौन में विलुप्ती’ तो “ओम्” में तो एक साउंड (ध्वनि) है। तो ओम् ही साइलेंस (मौन) है। या साइलेंस (मौन) में ओम् है?

वक्ता : उदाहरण है। कुछ और नहीं है। उदाहरण है। ओम्, जैसे आप अन्य कई निशब्द गढ़ सकते हैं। ओम् तो सिर्फ आपको एक ज़ायका देने के लिए है। और भी बहुत कुछ है।

दिन का विलोम, रात की विलुप्ति, बच्चे का न कहीं से पैदा हो जाना। बिना कारण के प्रेम की अनुभूति। ये सब वही हैं जो ओम् है। जो ध्वनि है वो पदार्थ हैं। बिना पदार्थ के कोई ध्वनि होती नहीं। और ध्वनि विग्लित हो जा रही है मौन में, पदार्थ समाहित हो जा रहा है अपदार्थ में। पदार्थ समाहित हो जा रहा है शून्य में। ये दो अलग अलग आयामों का योग है। ओम् उस योग का उदाहरण भर है। और वो उदाहरण अन्यत्र भी हैं। ओम अकेला उदाहरण नहीं है। प्रेम और क्या है? प्रेम और ओम् अलग अलग नहीं है।

ओम् क्या है? दो तलों का मिल जाना। दो ऐसे तलों का मिल जाना जो मिल ही नहीं सकते थे। पदार्थ अपदार्थ से कैसे मिल गया? मिट्टी से पौधे का पैदा हो जाना भी ओम् है। बोलिये कैसे? मिट्टी से जीवन कैसे अंकुरित हो गया? ये दो अलग अलग तल थे, ये मिल कैसे गए? आप यहाँ बैठे हो। आप बात सुन रहे हो मेरी और समझ भी पा रहे हो। ये ओम् है। कैसे ओम् है? ये मिट्टी का शरीर। ये समझ कैसे रहा है? दो अलग अलग तल मिल कैसे गए? समझ पदार्थगत तो नहीं होती ना। शरीर क्या है? पदार्थ है। शरीर और समझ इनका योग कैसे हो गया? ये ओम् है। जहाँ कहीं भी कुछ ऐसा हो रहा हो जो कार्य-कारण के सामान्य चक्र से बाहर हो, वो ओम् है। इसीलिए कहा की- आनंद, प्रेम, ये सब ओम् है।

श्रोता: तो जो साइलेंस (मौन) है। क्या साइलेंस (मौन) में ओम् है या ओम् में मौन है?

वक्ता : मौन से तो सब कुछ है। मौन किसी में नहीं समाएगा। ओम् और लाखों अन्य ओम् मौन में ही समाहित हैं। मौन तो आत्मा है, मौन तो सत्य है। मौन तो ब्रह्म है। वो किसमे समां जाएगा।

श्रोता : तो जो ये साउंड (ध्वनि) का निकलना है…

वक्ता : हाँ। साउंड (ध्वनि) पदार्थ है।

श्रोता : पदार्थ है। वो वाइब्रेशन (थरतराना) है?

वक्ता : हाँ।

श्रोता : हाँ तो वो अगर वाइब्रेशन है तो उसमें शांति कैसे हुई?

वक्ता : वाइब्रेशन अशांति है, इतना मानते हैं? इतना दिख रहा है?

श्रोता : जी।

वक्ता : तो वो जो अशांति है। वो जो मन का तरंगाइत होना है, वाइब्रेशन माने जो कांप रहा हो। जो लगातार कांप रहा है। जो स्थिर नहीं है। जिसमें तरंगे हैं, लहरें उठ रही हैं। यही है न वाइब्रेशन ? तो वही जब स्थिर हो जाता है, अपने केंद्र पर आ जाता है, तो वही शांति कहलाती है न? वही है न? तो तरंग से शुरू करते हैं। ओम् में ध्वनि से शुरुआत होती है और मौन पर..?

शुरू वहाँ से होता है जहाँ हम और आप हैं। हम कहाँ है? हम तरंगे हैं। हम असहजता हैं। हम सहज तो नहीं रहते हैं न? हम अशांति हैं। और अंत कहाँ पर होता है? शांति में।

श्रोता : तो ओम् शांति नहीं हुआ ना?

वक्ता : पूरी प्रक्रिया ही शांति की प्रक्रिया है। शांति का वृद्धस्त न हो तो आप शांति की ओर बढ़ेंगे कैसे? वो पूरी प्रक्रिया ही शांति की छाया में चल रही है। ओम् में आप शब्द से मौन की ओर जा रहे हैं। क्या आप मौन की ओर जा सकते हैं बिना मौन के अनुग्रह के?

श्रोता : मतलब एक साधन है ओम्?

वक्ता : उदहारण है। याद दिलाता है।

श्रोता : तो ओम् ही शांति नहीं है। ओम् एक प्रोसेस (प्रक्रिया) है जिससे हम शांति में जा सकते हैं?

वक्ता : ओम् शांति है। सब कुछ शांति है। शांति के अलावा और है क्या?

जब कहा जाता है-‛पूर्ण मिदः’। तो ये क्यों कहा जा रहा है की यह पूर्ण है। ये तो अशांति भी हो सकती है ना? ‛यह और वह’, दिस एंड दैट , ये तो अशांति ही है ना? द्वैत के दो सिरे। ये दोनों अशांत होते हैं ना। तो फिर ऋषि क्यों कह रहें हैं की पूर्ण हैं? वो तो अशांति को भी पूर्ण बता रहे हैं ना? ‛यह और वह’, किसको इंगित कर रहे हैं? द्वैत के दो सिरों को अशांति को ही तो इंगित कर रहे हैं ना? पर वहाँ तो कहा जा रहा है को अशांति भी पूर्ण है।

श्रोता : तो ओम् शांति नहीं है?

(सभी श्रोतागण हँसते हुए)

वक्ता : नहीं है। और अगर नहीं है ओम् शांति तो फिर शांति भी नहीं है।

श्रोता : मुझे ऐसा लगा की ओम् में वाइब्रेशन तो है..

वक्ता : ओम् में वाइब्रेशन शुरुआत में है। ओम् प्रक्रिया है पूरी।

श्रोता : लेकिन जो ओम् का एक्स्ट्रीम लेवल (चरम स्तर) है..

वक्ता : कोई एक्सट्रीम लेवल (चरम स्तर) नहीं है। ओम् पूरा है ना। जब आप ओम् बोलते हो, तो क्या “ओ” बोल कर रुक जाते हो?

आप ओम् बोलिये?

वक्ता खुद ओम् का उच्चारण करते हुए- “ओम्”

श्रोता : तो जो अंतिम का भाग है..

वक्ता : पूरा एक है ना। या ओम् के टुकड़े टुकड़े करेंगे। कि शुरू में अशांति है और बाद में शांति है?

श्रोता : जब तक वाइब्रेशन (तरंग) है। जैसे ओम् हम कह रहे हैं..

वक्ता : जब तक वाइब्रेशन (तरंग) भी है..

श्रोता : तब भी शांति है?

वक्ता : तब भी शांति है। क्योंकि वाइब्रेशन (तरंग) के आभाव की ओर जाने की शुरुआत आप नहीं कर सकते थे बिना शांति के। मात्र शांति ही है। आप वरना करते कैसे? आप चलते कैसे? फिर ओम् नहीं होता ना? फिर तो कुछ भी चलता रहता-“लप्लु”,“चपलु”,“तप्लू”।

(श्रोतागण हँसते हुए)

फिर तो इतने अन्य शब्द हैं वो चलते रहते ना। फिर ओम् नहीं आता।

श्रोता : हमें ये बात समझ में नहीं आ रही है की ओम् में अगर वाइब्रेशन (तरंग) है..

वक्ता : समझिये मत। मत समझिये। बस ओम् कहिये।

श्रोता : पर ओम् में वाइब्रेशन (तरंग) तो है?

वक्ता: आप वाइब्रेशन में अटक गए हैं इसलिए वाइब्रेट करते रहेंगे। इसिलए उस पर अटकिये मत। बस ओम् का पाठ करिये। आप कर क्या रहे हैं-आप “म” तक पहुँच ही नहीं पा रहे हैं। आप “ओ” करते जा रहे हैं और कह रहे हैं की ‛देखो ये वाइब्रेशन है। देखो ये वाइब्रेशन है।’ वो तो है ही। तो बात पूरी करिये ना।

ये तो वैसी ही सी बात है की कहा जाए- “द्वेष हीनता”। और आप द्वेष पर अटक जाएं और आप कहें कि- ‛देखो द्वेष बहुत है।’ अरे बात पुरी तो करिये। और वो अलग अलग तो नहीं है। एक ही शब्द हैं।

श्रोता : नहीं वो तो ठीक है लेकिन..

(सभी श्रोतागण हँसते हुए)

वक्ता : अगर ठीक है तो फिर ठीक रहने दीजिये।

शब्द-योग’ सत्र पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

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