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लेख
नए का आकर्षण, नए की आशंका || आचार्य प्रशांत, युवाओं के संग (2013)
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
15 मिनट
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श्रोता १: कुछ भी नया सामने आता है तो या तो ये लगता है कि नया है, तो असंभव है, होगा नहीँ, या ये लगने लगता है कि बहुत मुश्किल है, हमारी काबिलियत के बाहर है, इसलिए छोड़ दो| या तो रिजेक्शन आ जाता है या डर आ जाता है या निराशा आ जाती है| कुछ नया दिखा तो या तो उसको नकार ही दिया, अस्वीकृत या डर ही गये, या उससे निराश हो गये| क्या इनके अलावा भी जीने का कोई तरीका है?

वक्ता: चलो देखते हैं| तुम कब किसी नई बात को, नई घटना को, नए व्यक्ति को नकारते हो? अगर वो नया है तो एकदम नया ही है; तो आप नकार कैसे सकते हो? आप उसे मना कैसे कर सकते हो? रिजेक्ट कैसे कर सकते हो? आप से जो बात कही गयी और आप उसको अस्वीकृत कर रहे हो, ये अस्वीकृति कैसे होती है? इसका प्रक्रिया क्या है? मन में क्या घटना घटती है? तुम्हारे पास एक नयी बात आई और तुमने कहा, ‘ये ठीक नहीँ, मैं इसे अस्वीकृत कर रहा हूँ’| ये कैसे होता है?

श्रोता १: उसमें हमें रुचि नहीं |

वक्ता: अभी वो नयी है, तुम्हें उसमें रुचि या अरुचि का पता कैसे चलेगा?

श्रोता २: वो मेरी मानसिकता से मेल खा रहा है या नहीँ|

वक्ता: हाँ| अब दिक्कत ये है कि अगर पुराना पहले ही बैठा हुआ है, तो नया अभी आया ही कहाँ? मैं पुराने के बारे में ही सोच रहा हूँ, तो नया आया कहाँ अभी?

श्रोता ३: पर कभी-कभी एकदम से किसी चीज़ पर मन आ जाता है|

वक्ता: एकदम से नहीं आता| कुछ समय लगता है, थोड़ा सा समय| मान लो कुछ सेकंड ही लगे| मैं चाहता हूँ कि हम देखें कि उन चंद सेकंडों में मन में क्या घटना घटती है|

श्रोता ४: डर पैदा होता है|

वक्ता: हाँ, तो डर कैसे जाते हैं? ऐसे ही तो डर नहीं जाते? बैठे-बैठे तो नहीं डर जाते? कुछ होता है मन में| वो क्या होता है?

श्रोता ६: पुरानी चीज़ों से तुलना कर के देखते हैं|

वक्ता: हाँ! पुराने से तुलना होती है| हमें ये लगता रहता है कि पुराना जो है वही सब कुछ है| ‘मेरा टू-डाईमेंश्नल वर्ल्ड ही सब कुछ है’| नया जो भी आता है वो बाहर का है और हम उसकी तुलना करते हैं, उससे जो अभी तक के हमारे अनुभव में है और हमें याद है| अब निश्चित रूप से नया अगर वाकई नया है, तो वो पुराने से मेल तो नहीं खा सकता| अगर वो पुराने से मेल खा रहा है तो वो नया है ही नहीं| नये का अर्थ ही क्या है?

सभी श्रोतागण(एक स्वर में): जो पुराने से मेल ना खाता हो|

वक्ता: तो ये तो हमने ऐसे ही पक्का कर लिया कि जो नया है उसको हम कभी स्वीकार करेंगे ही नहीं| क्यों? क्योंकि अगर नया है तो पुराने से मेल खायेगा नहीं और पुराना ही हमारे लिए सब कुछ है क्योंकि हमारा आजतक पुराने से ही वास्ता रहा है, अनुभव रहा है| सबसे पहले तो बड़ी विनम्रता के साथ हमें ये स्वीकार करना होगा कि हमारा ज्ञान हमेशा अधूरा होता है| हमेशा हम जो नहीं जानते, उसका एक बहुत बड़ा विस्तार है| जो हम जानते हैं वो हमेशा बड़ा सीमित रहेगा| दूसरी बात ये कि हम जितना जानते हैं दुनिया को और अपने आप को, अगर वो काफी ही होता, अगर वो पूरा ही होता तो हमारी ज़िन्दगी में ना निराशा होती, ना कुंठा होती और ना शक होते और ना ही डर होता| अगर तुम सब कुछ जानते हो तो क्या तुम्हारा डर रह जाएगा? क्या निराशा रह जायेगी?

सभी श्रोतागण(एक स्वर में): नहीं!

वक्ता: कुछ नहीं रह जाएगा| जब आदमी इस बात को बड़ी विनम्रता से देख लेता है तो वो नये के लिए खुल जाता है| फिर जो तुमने तीनो चीज़ें बोलीं, ‘डर, अस्वीकृति और निराशा’, तीनों नहीं रह जाते| फिर मैं कहता हूँ कि आजतक जो भी मैंने जाना, जिन ढर्रों पर मैं जिया, उन ढर्रों पर चल कर तो वैसे भी मैं अधूरा अनुभव करता ही रहा हूँ| तो निश्चित रूप से नये का आना तो अच्छा है ना?

सभी श्रोतागण( एक स्वर में): हाँ|

वक्ता: कि बुरा है?

सभी श्रोतागण(एक स्वर में): नहीं|

वक्ता: तुम देखो ना कहीं ना कहीं हम सब उस नये को तलाश रहे हैं| नहीं तलाश रहे हैं क्या? पर कहानी मज़ेदार यहाँ पर हो जाती है कि वही नया जब सामने आता है तो हमारी हालत ख़राब हो जाती है| सबके-सब नया भविष्य चाहते हो या भविष्य वैसा ही रहे जैसा अतीत था?

सभी श्रोतागण( एक स्वर में): नया|

वक्ता: तुम सब के पास सपने हैं?

सभी श्रोतागण( एक स्वर में): जी सर|

वक्ता: वो सपने क्या हैं? कि तुम वैसे ही ज़िन्दगी जियो जैसी तुमने दस साल पहले जी? या किसी सुन्दर, नये भविष्य के सपने हैं?

सभी श्रोतागण(एक स्वर में): नए भविष्य के|

वक्ता: अब चाहते तो हम सब नया भविष्य हैं, कहीं ना कहीं हमारा अंतरतम किसी नये की प्रतीक्षा कर ही रहा है| कर रहा है ना?

सभी श्रोतागण( एक स्वर में): जी सर|

वक्ता: और वो जो नये की तलाश है वो कई रूपों में सामने आती है| कोई नया साथी मिल जाये| तुम्हारी उम्र में इस रूप में सामने आती है कि नया साथी मिल जाये| थोड़े और बड़े हो जाओगे तो नया घर मिल जाये या नई नौकरी मिल जाये| और जब बूढ़े हो जाओगे तो नया जीवन मिल जाये| ये जन्म बेकार चला गया, अब नया जन्म मिल जाये, पुनर्जन्म| पर नये कि तलाश तो बनी ही हुई है| लोगों को देखा है? वो तीन-चार साल में ही नई-नई गाड़ियाँ खरीद रहे हैं| औरतों को देखा है? वो हर महीने नये कपड़े खरीद रही हैं| लगातार नये कि तलाश बनी हुई है और वो बड़े विकृत रूप से सामने आती है| जो वास्तविक नया है, वो हमें कभी मिलता नहीं, तो हम इन छोटे-मोटे नयों से दिल बहला लेते हैं| ‘चलो आज कुछ नया करते हैं’| और नया क्या करते हैं, कि रोज़ पूरी खाते थे तो आज डोसा खायेंगे| चलो आज कुछ नया करते हैं| और नया क्या करते हैं, कि रोज़ ऐसे होकर के जाते थे तो आज़ वैसे होकर जायेंगे| ये बड़े सस्ते विकल्प हैं| तुम्हें जो वास्तविकता में नया चाहिये, तुम्हें इससे नहीं मिलेगा| जो वास्तविक नया है, तुमने ठीक कहा, वो तो जब आता है बिलकुल हालत ख़राब हो जाती है, फिर भागते-फिरते हैं, मुँह छुपा लेते हैं| तीन शब्द तुमने बोले, तीनों हम उसके ऊपर हथियार कि तरह इस्तेमाल कर देते हैं-अस्वीकृति, डर, निराशा -और झूठे-मूठे नयों के पीछे भागते रहते हैं| तो हम ये क्या खेल खेल रहे हैं अपने ही साथ?

मैं बताता हूँ, क्या खेल खेल रहे हैं| नया हमें चाहिये तो पर वो नया इतना नया होता है, हमने कहा ना कि नये का अर्थ ही है कि वो पुराने से संयुक्त होगा ही नहीं, तो नया हमें चाहिये पर वो नया इतना नया होता है कि कहीं ना कहीं हमें डरा जाता है| तो हम नये कि जगह पुराने का ही प्रक्षेपण कर देते हैं| हम नाम तो दे देते हैं कि नया चाहिये और किसी न किसी रूप में पुराने को ही दुहराने की कोशिश करते रहते हैं| तुम सपने लेते हो कि तुम्हें कोई नौकरी मिल जाये पर तुम वही नौकरियाँ चाहते हो जिनके बारे में तुमने सुन रखा है| तुम्हें वास्तव में बिल्कुल ही नया काम करने को मिल जाये तो तुम डर जाओगे, कदम पीछे खींच लोगे| जो लोग गाँव-देहात से हैं या छोटे शहरों से आते हैं, उनके मन में सरकारी नौकरियों को लेकर बड़ा आकर्षण रहता है क्योंकि उन्होंने वही देखा है अपनी जगहों पर| कि घूम रहा है सरकारी ऑफिसर और सब उसको सलाम बजा रहे हैं| अब तुम कहते हो कि मुझे एक नया भविष्य चाहिये, तो क्या अतीत के पुराने आधारों पर मिलेगा? नया भविष्य चाहिये अतीत के पुराने आधारों पर? ऐसा तो नहीं हो सकता| तो हमारी बड़ी मज़ेदार हालत है, नया चाहिये भी और नया मिल जाता है तो हालत ख़राब हो जाती है| तो हमने एक बड़ा चतुर तरीका निकाला है| हम कहते हैं कि पुराने को ही ले लेंगे और उसमें नये का लेबल लगा देंगे| सांप भी मर गया और…

कई श्रोतागण(एक स्वर में): लाठी भी नहीं टूटी|

वक्ता: नया चाहिये तो क्योंकि कहीं ना कहीं संतुष्टि मिलती नहीं है पुराने से| पर नया मिलता है तो खौफनाक भी लगता है| इतना सुन्दर होता है, इतना तेज़ होता है उसमें कि हमसे बर्दाश्त ही नहीं होता| तो ऐसा करो कि पुराने को ही लो और उसपर नये का लेबल लगाओ और काम चल रहा है| अब ऐसा अधूरा काम चलने में तो कुछ रखा नहीं है| घुटन रहेगी और कुछ नहीं रहेगा| नया उसी के जीवन में आएगा जो नये से डरे ना| डरेगा वही नहीं जो जानता है कि मेरा कोई नुक़सान हो नहीं सकता| और ये वही जानेगा कि मेरा कोई नुक़सान हो नहीं सकता जिसके मन में अस्तित्व के लिए बड़ी श्रद्धा हो| जो कहे, ‘आने दो जो आ रहा है, जन्म भी मेरा तो एक नई घटना ही थी| और मुझसे पूछ कर नहीं हुई थी, और मैं नहीं जानता था कि किस दुनिया में आ रहा हूँ’| तुम में से कितने लोगों ने ये तय करा था कि इसी घर में पैदा होना है?

(सभी श्रोतागण हँसते हैं)

वक्ता: एकदम नई घटना थी और एक अनजानी जगह पर पहुँच गये थे| हम सब जन्म लेकर एक नई और अनजानी जगह पर आ जाते हैं| याद करो वो सारी बातें, गौर से देखो अपने जीवन को और कहोगे कि नये में खतरा है कहाँ? कहाँ नये में कोई खतरा है? लगातार सब कुछ नया-नया ही तो है| अभी ये जो क्षण तुम्हारे सामने है इससे कितनी बार पहले भी गुजर चुके हो? कितनी बार? मैं रीप्ले तो नहीं कर रहा हूँ कोई पुराना रिकॉर्ड| ये नया ही है ना बिल्कुल? तो डरना कैसा है? सब कुछ जब लगातार नया ही है और ऐसी स्थिति में मैं अगर नये को ठुकरा रहा हूँ तो मैं किसको ठुकरा रहा हूँ? मैं जीवन को ही ठुकरा रहा हूँ| समझ रहे हो? जब इस सफाई से अपनी पूरी ज़िन्दगी को देखोगे तो तुमने जो तीन बातें कहीं- अस्वीकृति, डर, निराशा- तीनों तुमको नादानियाँ लगेंगी| तुम कहोगे कि अगर मैं नये को अस्वीकृत कर रहा हूँ तो जीवन को ही अस्वीकृत कर रहा हूँ क्योंकि जीवन लगातार ही नया है| तुम कहोगे कि अगर मैं नये से डर रहा हूँ तो इससे भी डर रहा हूँ, उससे भी डर रहा हूँ और हर पल से डर रहा हूँ क्योंकि हर पल लगातार नया है| अगर मैं नये से निराश हूँ तो मैंने तय ही कर लिया है कि फिर जीवन कुंठा में बिताना है| क्योंकि सब कुछ नया ही नया है| मेरे ये शब्द तुमने पहले सुन रखे हैं क्या? तुम अभी जो सांस ले रहे हो, वो पहले भी ले चुके हो क्या? बोलो? पुराना है कहाँ कुछ? तुम कहते हो तुम नये से डरते हो, नये से डरने का मतलब है जीवन ही डर में बिता देना| कितने लोग तुममें से उत्सुक हो कि ज़िन्दगी तो डर में ही बितानी है? हाथ खड़े करो ज़रा!

(कोई हाथ खड़ा नहीं होता है)

वक्ता: और कितने लोग कहते हो, ‘नहीं, ज़िन्दगी का तो कोई और मतलब है| डर तो नहीं होना चाहिए जीवन में’|

(सभी हाथ उठा लेते हैं)

वक्ता: (मुस्कुराते हुये) इतने तो सब समझदार हो, और नये की तलाश भी सबको है| जो कुछ करते हो कुछ नया मिल जाए इसलिए करते हो| तो अब से ये बात पक्की है कि अपनी जो मैकेनिकल कंडीशनिंग है कि कुछ नयी बात, कोई नया आदमी, कोई नई स्थिति सामने आयी नहीं और तुमने अपने कदम उससे पीछे खींच लिये; अब ये जब भी हो तो तुरंत चेत जाना कि फिर वही कहानी दोहरायी जा रही है| ये मन की पुरानी व्यवस्था है; वही अपनी नादानियों पर फिर उतरी हुई है| बिना बात ही डर रही है, व्यर्थ ही डर रही है| कोई कारण नहीं है डर का| समझ रहे हो ना?

कई श्रोतागण (एक स्वर में): जी सर|

वक्ता: अगर तुम नये से डरने लगे तो ठीक इस वक़्त भी मुझे समझ नहीं पाओगे| क्योंकि मैं जो कुछ भी तुमसे कह रहा हूँ या कहने जा रहा हूँ, वो नया है ही| यही इस सत्र की कीमत है| अगर मैं तुमसे वही सब कहने लगूं जो तुम पहले ही जानते हो तो मैं अपना और तुम्हारा, दोनों का समय ख़राब करूँगा| मेरे यहाँ आने में कीमत है ही तभी जब नये के दरवाज़े खुलें| भूलना नहीं वो थर्ड-डायमेंशन और थर्ड ही नहीं, मैं तुमसे कहता हूँ, अनगिनत आयाम हैं, इनफिनिट डाइमेंशन्स हैं| कहीं नहीं रुक जाना है| हमेशा खुले हुए रहना है| हमेशा|

जीवन में जो कुछ भी कीमती है वो पुराना नहीं होता, बासा नहीं होता| हाँ, ये शर्ट शायद वही होगी जो तुमने कल भी पहनी थी पर ये मौका वही नहीं है जो कल भी था| ये शब्द वो हो सकते हैं जो तुमने पहले भी कई बार सुने हों क्योंकि मैं जो कुछ भी बोल रहा हूँ शब्दकोष के भीतर से ही है, कोई नया शब्द आविष्कृत करके तो नहीं बोल रहा| ये सारे शब्द तुमने पहले भी सुनें हैं| पर ये बात एकदम नयी है और हमेशा ही नयी होगी| मैं बोलूं या कोई और बोले| व्यक्ति वही हो सकता है जिसको तुम पहले से जानते हो परन्तु उस व्यक्ति के साथ बिताया जा रहा वो क्षण हमेशा ही नया है| प्रेम हमेशा नया है| व्यक्ति और उसका नाम भले ही पुराने हो सकते हैं| हाँ, वही नाम है, जो कल भी था| रोज़ नाम नहीं बदलोगे पर वो जो क्षण है जो उसके साथ बिता रहे हो और प्रेम, वो नया ही है| किसी ने कहा है, ‘संसार एक सतत रचना है , एक सृजन की प्रक्रिया’, लगातार नया ही है| एक बार बना नहीं दिया गया है, प्रतिपल बनाया जा रहा है और लगातार नया है, हर समय बदल रहा है; इसी बदलाव का नाम जीवन है| जो इस बदलाव को स्वीकार नहीं कर सकता वो जीवन को अस्वीकार कर रहा है| जो लोग बदलाव को स्वीकार नहीं करते, वैसों पर एक बड़ा मजेदार किस्सा है:-

एक बार एक सज्जन अदालत में गवाही देने गये| तो उनसे जज ने पूछा कि तुम्हारी उम्र क्या है| तो वो बोले, ‘तीस साल’| जज ने कहा, ‘क्यों झूठ बोल रहे हो? आज से पांच साल पहले भी तुम आये थे और तुमने कहा था ही तुम्हारी उम्र तीस साल है’| तो ये सज्जन बोलते हैं, ‘आप भी वही, ये अदालत भी वही, ये कठघरा भी वही, ये गीता जिसपर मैं हाथ रख कर कसम खा रहा हूँ और मैं भी वही तो मेरी उम्र कैसे बदल सकती है? सवाल कंसिस्टेंसी का है, सब कुछ वही है तो उम्र भी वही रहेगी’|

समझ रहे हो? जो असली है, वो लगातार बदलेगा| किताब, किताब की ज़िल्द और किताब के पन्ने, ये तुम्हें लग सकता है कि पुराने हैं, पर तुम कभी पुराने नहीं रह सकते| तुम्हें बदलना होगा| जो अपनेआप को भी रोकने की कोशिश करते हैं, वो उसी तरीके से मज़ाक बन जाते हैं जैसे ये सज्जन, कि बात कंसिस्टेंसी की है| ‘जब मैंने एक बार पांच साल पहले बोल दिया था कि मेरी उम्र तीस साल है तो अब मैं कैसे कह सकता हूँ कि पैंतीस हो गयी? तीस ही रहेगी| कह दिया सो कह दिया’|

(सभी हँसते हैं)

तुम ऐसे मत हो जाना| जो लगातार बदल रहा है उसको बदलने ही देना, उसका स्वागत करना, स्वीकार करना| ठीक है? मन बना कर मत बैठ जाना कि ऐसा ही है और अब मुझे कुछ जानना नहीं, कुछ समझना नहीं| ठीक?

सभी श्रोतागण( एक स्वर में): जी सर|

-‘संवाद’ पर आधारित।स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

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