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लेख
मन को संयमित कैसे करें? || आचार्य प्रशांत (2019)

प्रश्नकर्ता: आचार्य जी, मन को कैसे संयमित करें?

आचार्य प्रशांत: हम आमतौर पर ‘संयम’ का अर्थ समझते हैं धैर्य से, या नियंत्रण से। अच्छा शब्द आपने प्रयोग किया है–‘संयम’। पतंजलि योग-सूत्र में आप जाएँगे तो पाएँगे कि ‘संयम’ का अर्थ है मन को किसी विषय में दृढ़ता से स्थापित कर देना।

आप पूछ रहे हैं, “संयम कैसे करें?” प्रश्न ये होना चाहिए, “संयम किस पर करें? मन को ले जाकर कहाँ बैठा दें? संयम किसपर करें?”

मन, शरीर और आत्मा के बारे में आपने पूछा न? मन ही है। मन ही है! मन बिलकुल शांत हो जाए, मिट जाए, उसको बोल देते हैं ‘आत्मा’। और मन विस्तार ले ले, पाँच इन्द्रियों का सहारा ले ले, एकदम फैल जाए, प्रकृति और संसार बन जाए, तो उसको कह देते हैं ‘शरीर’।

इन्द्रियों के विषयों को कहते हैं ‘संसार’, और इन्द्रियों के भोक्ता को कहते हैं ‘मन’। इन्द्रियाँ सब सामग्री जिसको ले जाकर देती हैं, उसको कहते हैं ‘मन’। तो है मन ही। मन का स्थूल और विस्तृत सिरा कहलाता है ‘संसार’। ‘संसार’ माने जहाँ आपको सब पदार्थ, स्थूल पता चलते हैं। देह भी वही है, स्थूल।

मन ने विस्तार ले लिया, तो देह है, संसार है। वही मन शांत हो गया, बिन्दुवत हो गया, तो ‘आत्मा’ कहलाता है।

मन ही है। ऐसा समझ लीजिए, बिंदु है आत्मा, फिर मन है, और फिर पूरा विस्तार है, संसार है।

मन बैचैन और चंचल रहता है, जैसा कि आपने अभी कहा। लेकिन मन की आँखें ऊपर की ओर हैं, संसार की ओर। तो फिर वो चैन कहाँ खोजता है? संसार में। जबकि चैन उसको मिलता है अपने पीछे, अपने नीचे, मिटकर के, बिंदु होकर के। बिंदु हो जाना माने मिट ही जाना।

तो इसी से बताइए कि मन को किस पर संयम करना चाहिए? हम एक-एक चरण बढ़ा रहे हैं। तो मन को किसपर संयम करना चाहिए? मन कहाँ जाकर बैठ जाए कि उसे शांति मिलेगी? आत्मा पर।

अब आत्मा का तो कोई नाम नहीं, पता नहीं, ठिकाना नहीं, नाम नहीं, रूप नहीं, रंग नहीं। तो मन आत्मा पर जाकर कैसे बैठेगा? नहीं बैठ सकता न। तो फिर जानने वालों ने कहा, “तुम संयम करो इसी संसार में उस विषय पर, जो तुम्हें आत्मा तक ले जा सके।”

तो लोगों ने पूछा, “कैसे पता चलेगा वो विषय?” तो बताने वालों ने कहा, “अच्छा तुम्हें ये तो पता चल सकता है कि संसार में ऐसे कौन-से विषय हैं जो तुम्हें संसार में और उलझाते हैं?” लोगों ने कहा, “हाँ”, तो वो बोले, “पहले उनको हटाओ। उनके नाम के आगे कट लगाते चलो कि ये तो नहीं है, क्योंकि ये संसार का विषय है, इसकी तरफ जाओ अगर तो ये संसार में और उलझाता है।”

संसार में ही ख़ास तरह के विषय होते हैं जिनके पास जाओ अगर, तो वो संसार से आगे, संसार से पलटकर, तुमको आत्मा की ओर ले जाते हैं। आत्मा पर संयम करने का अर्थ हुआ, मन के सन्दर्भ में, संसार के उस विषय पर संयम करना, जो तुम्हें आत्मा तक ले जा सके।

वो विषय आपके व्यक्तित्व पर निर्भर करते हुए अलग-अलग होता है।

ऐसा हो सकता है कि आप नर्तक हैं, तो आपके लिए नृत्य ही माध्यम बन जाए आत्मा तक पहुँचने का, कि आप नृत्य करते हुए इतना खो गए कि मन मिट गया। ‘आप खो गए’ माने मन मिट गया। मन मिट गया, तो फिर बची क्या? आत्मा मात्र। हो सकता है।

आप चित्रकार हो सकते हो, वैज्ञानिक हो सकते हो, आप धावक हो सकते हो। और बिलकुल हो सकता है कि आप किसी ऐसी गतिविधि, किसी ऐसी क्रिया में संलग्न हो, जिसमें आप पूरी तरह डूब जाते हैं, डूब कर मिट जाते हैं।

या फिर ऐसा हो सकता कि आप उनपर संयम कर रहे हैं जिन्होंने आत्मा की ख़ूब बात की है। ये अध्यात्म का क्षेत्र है। ऋषियों को पढ़ो, संतों के भजन गाओ। वो इसी संसार के लोग थे, पर वो संसार से आत्मा की तरफ का द्वार थे। रहते वो इसी दुनिया में थे, पर जो उनके पास पहुँचा, उसको वो दुनिया से आगे पहुँचा देते थे।

(प्रश्नकर्ता को सम्बोधित करते हुए) आपकी जैसी यात्रा रही है, मुझे लगता है कि आपके लिए ग्रन्थों और सन्तों पर संयम करना पहला चरण होना चाहिए। जाएँ और वहीं पर टिक जाएँ, ठहर जाएँ। उसके बाद जब मन मज़बूत हो जाए, अपनी जगह खड़ा होने के लायक हो जाए, तो फिर आप जगत से सहारा लेना छोड़ देंगे, उसकी ज़रुरत नहीं पड़ेगी। फिर आप जगत को सहारा देना शुरू कर देंगे।

आरम्भिक चरण में तो आप जगत के पास जाते हैं और कहते हैं, “सहारा दो।” मैंने आपसे कहा कि वो सहारा आपको मिलेगा ऋषियों और ग्रन्थों के रूप में। और एक बार आपने उनपर अनुशासन के साथ संयम कर लिया, उसके बाद आप दुनिया में सहारा माँगने नहीं जाएँगे, उसके बाद आप दुनिया को सहारा देने जाएँगे, जैसे कि सन्तों ने दुनिया को सहारा दिया। वो भी दुनिया के ही थे, लेकिन उन्होंने दुनिया को सहारा दिया। आपकी भी फिर वही दशा हो जाएगी। फिर आप बहुत तरीक़ों से दुनिया के उपयोग के हो जाएँगे–वास्तविक उपयोग के।

अभी तो यही करिए–शास्त्रों के पास जाइए, सन्तों के पास जाइए, उनकी बातें सुन लीजिए। बहुत कुछ है उनके पास बताने के लिए जो आपके लिए आवश्यक है। कौन-से ग्रन्थ विशेषकर आपके लिए उपयुक्त हैं, उसकी एक सूची मैं आपको दे दूँगा। वहाँ से शुरू करिए।

फिर कुछ महीनों बाद आगे की बात करेंगे।

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