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लेख
मैं क्यों हूँ?
Author Acharya Prashant
आचार्य प्रशांत
14 मिनट
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प्रश्न : मैं क्यों हूँ सर? क्या हूँ?

वक्ता: *( मुस्कुराते हुए )* कौन है?

श्रोता १ : ‘आई’ |

वक्ता: ‘आई’, माने कौन?

श्रोता १ : सर, राहुल |

वक्ता: राहुल? राहुल क्यों है, ये तो बड़ी आसान सी बात है | राहुल शब्द तुम्हारे माँ – बाप को या सगे-सम्बन्धियों को प्यारा लगा तो नामकरण के दिन तुमको ये नाम दे दिया गया तो राहुल इस वजह से है | अब बताओ और किसकी बात कर रहे हो?

श्रोता १ : सर अपनी |

वक्ता: अपनी माने कौन?

श्रोता १ : इंसान |

वक्ता: इंसान माने क्या?

*( सब हँसते हैं )*

वक्ता: नहीं! सिर्फ हँसो नहीं, बात दूर तक जा रही है | अपनी माने क्या?

श्रोता १ : जीवित |

वक्ता: बढ़िया! सही जा रहे हो जीवित माने क्या?

श्रोता १ : जो पैदा होता है |

वक्ता: पैदा तो शरीर होता है मांस होता है, थोड़ा सा, १.५ – २ किलो |

श्रोता १ : सोल |

वक्ता: जूतों में जो होती है?

(सब हँसते हैं)

श्रोता १ : आत्मा |

वक्ता: कौन-कौन देखता है टी.वी. पर वो भूत-प्रेत आत्मा वगैरह यहाँ पर? देखते हो?

श्रोता २ : हाँ, सर |

वक्ता: कैसी होती है?

श्रोता १ : सर खतरनाक होती है |

वक्ता: कैसे खतरनाक होती है? हमसे ज्यादा खतरनाक होती है? आत्मा माने क्या? जैसे राहुल एक शब्द, वैसे आत्मा एक शब्द या आत्मा का कुछ अर्थ है? जब भी ये सवाल करोगे कि मैं हूँ क्यों; मैं इस ग्रह पर क्यों हूँ; मैं इस दुनिया में क्यों आया हूँ; या मैं जीवित क्यों हूँ; तो तुमको सबसे पहले अपने आप से यही पूछना पड़ेगा कि मैं किसकी बात कर रहा हूँ? जब तुम कह रहे हो कि मैं यहाँ क्यों हूँ, तो ‘क्यों’ तीसरे नंबर पर आता है, पहले नंबर पर क्या आता है?

श्रोता २ : मैं |

वक्ता: और दूसरे नंबर पर क्या आता है?

श्रोता २ : यहाँ |

वक्ता: तो तीसरे की बात छोड़ो, पहले और दूसरे की बात करो | मैं माने कौन और किसकी बात कर रहे हो? मैं माने कौन? और अगर तुम कहते हो कि ‘शरीर’, तो शरीर आज से नहीं है | ये तो हमेशा से था | ये जो तुम साँस ले रहे हो, यही तुम्हारा शरीर बन रही है ये जो तुम खाना खा रहे हो, पानी पी रहे हो, यही तुम्हारा शरीर बन रही है और ये तो हमेशा से ही थे ये जो तुमने खाना खाया, ये खाना मिट्टी है और मिट्टी हमेशा से थी मिट्टी पहले पत्थर थी तो ये सब तो थे तो अगर मैं का अर्थ सिर्फ शरीर है तो ये पूछना ही बेकार है कि मैं यहाँ क्यों हूँ क्योंकि वो हमेशा से है और रहेगा जिसको तुम मौत कहते हो उसके बाद भी शरीर तो बचा ही रहेगा ना? मौत में कभी शरीर मरता है क्या? एक-एक ग्राम जो तुम्हारा वज़न है, वो इस पृथ्वी पर ही रहेगा, या फिर कहींचला जाएगा? अगर ८० किलो के हो तो मरने के बाद ठीक ८० किलो इसी ज़मीन पर रह जाएगा, १ ग्राम भी कम नहीं होना है शरीर अमर है, शरीर कहीं नहीं जाता| तुम मुझे बताओ कि जब ‘मैं’ कह रहे हो तो ‘मैं’ माने क्या? किसकी बात कर रहे हो कि मैं इस पृथ्वी पर क्यों हूँ? पृथ्वी माने क्या? और शरीर-पृथ्वी एक ही बात है क्योंकि दोनों पदार्थ हैं क्या है जिसकी बात कर रहे हो कि मैं क्यों हूँ?

तुम्हें घूम-फिर कर उसी पर आना पड़ेगा, आत्मा को जानते नहीं खतरनाक और बोल दिया, तब जानने का सवाल ही नहीं हुआ क्योंकि जहाँ खतरा है वहाँ जायें क्यों? जहाँ खतरा है, उसे जाने क्यों? इतना ही काफी है कि खतरनाक है; अब दूर रहो अब प्रश्न कहाँ पैदा होता है जानने का? अब पूछो उस लड़के से (एक श्रोता कि तरफ इशारा करते हुए), उसने देखा होगा ना कि भूतनी पेड़ से उल्टी लटकी हुई है|

*( सब हँसते हैं )*

हमारी कहानियों का कोई अंत है? उसके पाँव पीछे की ओर हैं| आदमी था या औरत थी? हमारी कहनियों का कोई अंत नहीं है और जहाँ कहानियां हैं वहां सच नहीं है| जहाँ कहानी होगी वहीं से सच गायब रहेगा| तो इस कारण हम जान भी नहीं पाते कि बात क्या है| ये सवाल तो बहुत प्यारा है और सबको करना चाहिए कि मैं हूँ ही क्यों? पर फिर ये सवाल उलझा देगा तुम्हें| अगर तुम उसमें ये नहीं जानना चाहते कि ‘मैं’ जब कह रहा हूँ तो इशारा किसकी तरफ है| किसकी तरफ इशारा कर रहा हूँ? मैं माने क्या? शरीर की तो बात नहीं कर सकते तुम| शरीर का यहाँ होने का कारण बहुत स्पष्ट है कि एक कोशिका माँ से आई, एक बाप से और वो दोनों मिलीं| पहली दो कोशिकाएँ माँ-बाप से आ गयीं, आगे की कोशिकाएँ माँ से मिलीं| जब २ किलो तुम्हारा वज़न हो गया तब तुम पैदा हो गये| मैं अभी सिर्फ पदार्थ यानि शरीर की बात कर रहा हूँ| उसके बाद तुम खा रहे हो, पी रहे हो, तो इस तरीके से शरीर बनता जा रहा है और जो कुछ खा-पी रहे हो वो धरती पर पहले से मौजूद है| कहीं बाहर से नहीं आ रहा| तो शरीर तो स्पष्ट है कि कहाँ से आ रहा है| शरीर का क्या पूछते हो? निश्चित रूप से जब तुम ‘मैं’ कह रहे हो तब तुम शरीर की बात नहीं कर रहे, तुम किसी और की बात कर रहे हो| किसकी बात कर रहे हो?

श्रोता ३ : सोल|

वक्ता: फिर से सोल|

*( सब हँसते हैं )*

वक्ता: किसकी बात कर रहे हो?

श्रोता ४ : सर वो ये पूछ रहा है कि ये ‘मैं’ किसको समझूँ?

वक्ता: ( मुस्कुराते हुए ) ये उसको पूछने दो| वो ये नहीं पूछ रहा| इस सवाल पर ख़ुद आना बहुत ज़रूरी है| जब तक इस सवाल पर ख़ुद नहीं आओगे, तब तक दूसरों पर निर्भर बने रहोगे| जब सवाल पर आये ही नहीं तो समझ कैसे आएगा? अगर सवाल पर आकर के भी मामला खुल नहीं रहा है तो उसका अर्थ पता है क्या है? उसका अर्थ ये है कि तुम्हारे पास उल्टे-सीधे जवाब पहले से मौजूद हैं| सवाल का समाधान इसलिए नहीं होता क्योंकि तुमने कुछ जवाबों को पहले से ही पकड़ रखा है| जैसे उसने जवाब पकड़ रखा था ना कि ‘मैं कौन हूँ – आत्मा’| जब भी तुम कोई जवाब पहले से पकड़ कर रखोगे तो प्रश्न का समाधान नहीं मिलेगा| मैं उत्तर की बात नहीं कर रहा, मैं समाधान की बात कर रहा हूँ और तुम्हारे पास बहुत सारे जवाब पहले से मौजूद हैं| हम यहाँ पर इसलिए हैं क्योंकि भगवान जी ने हमें उपर से फूँकमारी है| अब मिल गया जवाब, अब मुझसे क्यों पूछ रहे हो? और अपने आप से भी क्यों पूछ रहे हो, मिल तो गया जवाब| हम सब आत्मायें हैं जो ब्रह्माण्ड में विचरण करती रहती हैं और जैसे ही पाती हैं कि एक औरत है तो उसके गर्भ में जाकर बैठ जाती हैं और फिर पैदा हो जाती हैं|

मिल गया जवाब? अब पूछने की क्या ज़रूरत है? जब इतनी बेहूदी कहानियाँ घूम रही हैं चारों तरफ, तो किसी साफ़ जवाब की आवश्यकता क्या है? बचपन में वो कहानियाँ होती थीं, उनमें भी तो ऐसे ही होता था कि औरत लेटी हुई है, पेट फूला हुआ है और आसमान से आत्मा उतरी और घुस गयी और तुम कहते हो कि ठीक ऐसे ही होता होगा| क्या करोगे! बच्चे हो और बच्चों को यकीन करने के अलावा रास्ता भी क्या है? पर तुम अब तो बच्चे नहीं हो ना? या अब भी तुम उन किस्से-कहानियों में ही उलझे हुए हो| तुम्हें अभी भी नहीं दिख रहा कि वो सब फालतू की बातें हैं?

एक दिन ऐसा ही था, तुम्हारा कोई दोस्त, उसने सवाल पूछा आत्मा के ऊपर| बोला कि एक आदमी मर रहा था तो उसको शीशे के बक्से में रखा गया और जब वो मरा तो शीशा चटक गया और जैसे ही शीशा चटका, तो पाया गया कि उसका वज़न २१ ग्राम कम हो गया है| तो इससे पता चलता है कि आत्मा २१ ग्राम की होती है| वो २१ ग्राम को बचाने के लिए कुछ भी करेगा| पूरी कहानी २१ ग्राम पर आकर टिक गयी है| मैं कौन; २१ ग्राम| बड़े-बड़े संतो को, ज्ञानियों को उसने मात कर दिया जिन्होंने जिंदगी लगा दी इस सवाल का उत्तर खोजने में| बिलकुल तराजू वाला उत्तर है, २१ ग्राम , ज़रूर दुकानदार रहा होगा|*( सब हँसते हैं )*

तुम यहाँ क्यों हो ये मत पूछो| ये देखो कि तुम हो और पूरी तरह हो| जब भी कभी पूछोगे कि मैं यहाँ क्यों हूँ तो तुमको ये मानना ही पड़ेगा कि मैं यहाँ कभी नहीं भी था| ध्यान देना इस बात पर| इससे अगर चुक गये तो चुक ही गये और पकड़ लिया तो पकड़ लिया| बात आसानी से समझ में आने वाली नहीं है| जो भी ये प्रश्नकरता है कि मैं यहाँ क्यों हूँ, वो ये मान कर बैठा हुआ है कि कोई समय ऐसा भी था जब मैं यहाँ नहीं था और फिर किसी कारण से मैं यहाँ आया| तुम उसी कारण को जानना चाहते हो कि मैं यहाँ क्यों हूँ| क्यों का अर्थ होता है कारण| तुम कारण जानना चाहते हो| कारण तभी हो सकता है जब न होने की भी कोई संभावना हो| कारण तभी हो सकता है जब तुम्हारा कोई जन्म हुआ हो| जब तुम कहते हो कि मैं यहाँ क्यों हूँ तो तुम कहते हो कि मेरा जन्म ही क्यों हुआ? तुमने ये मान ही रखा है कि तुम्हारा जन्म हुआ है| तुमने ये मान ही रखा है कि कोई समय ऐसा था जब तुम नहीं थे| तुम्हारा जो पूरा सवाल है वो समय पर आधारित है – कि समय चला जा रहा था पर मैं नहीं था| फिर एक बिंदु आया जब मैं हो गया और फिर एक और बिंदु आएगा जब मैं नहीं रहूँगा| ये सवाल ही गलत है क्योंकि समय है ही नहीं| समय बस मन में चल रहा है| तुम हो, बस यही काफी है| समय है ही नहीं| तुम अपने जन्म से पहले भी थे| जन्म के बाद बस तुम्हारा मन काम करने लग गया| तुम मृत्यु के बाद भी रहोगे| बस मन नहीं रहेगा, तो समय नहीं रहेगा| जन्म से पहले समय नहीं था| तुम्हारा जन्म नहीं होता, समय का जन्म होता है|

जन्म से पहले समय नहीं होता| तुम होते हो, समय नहीं होता| मृत्यु के बाद भी तुम रहते हो पर समय नहीं रह जाता| इसीलिए मृत्यु के बाद कहना भी उचित नहीं है, मृत्यु होते ही समय भी मर जाता है| तो ये भी मत पूछो कि मौत के बाद क्या होगा| मौत के बाद समय ही नहीं है तो कुछ होगा भी नहीं| समय मन में है, समस्त कारण मन में है| तुम कहते हो न कि मैं यहाँ हूँ, ये सारे कारण मन में हैं|तुम जब सो जाओ तो क्या ये सवाल पूछोगे कि मैं यहाँ क्यों हूँ? इस सवाल का पूछना बस ये बताता है कि मन भटक रहा है| मन इधर-उधर चल रहा है| जैसे ही मन शांत होगा, ये सवाल गायब हो जाएगा| इस सवाल का उत्तर नहीं होता| इस सवाल का समाधान है कि ये सवाल ही न उठे क्योंकि ये सवाल मन है| मन प्रश्न पूछ रहा है कि मैं क्यों हूँ? जब तुम कहते हो कि मैं क्यों हूँ तब वस्तुतः मन पूछ रहा है कि मैं क्यों हूँ? मन क्यों है; क्योंकि वो सवाल पूछ रहा है| सवाल न पूछे तो मन नहीं है| तो जब तुमने पूछा कि मैं क्यों हूँ तो अगर कोई और होता यहाँ पर मजाकिया किस्म का आदमी,तो वो ये भी कह सकता था कि तुम इसीलिए हो क्योंकि तुम ये सवाल पूछ रहे हो| न पूछो तो नहीं हो| जो शांत बैठा है, बिलकुल स्थिर, जिसको ये प्रश्न उठ ही नहीं रहा, जिसको ये प्रश्न बेवकूफी का लगे कि मैं क्यों हूँ, उसके लिए ये सवाल है ही नहीं| शांत हो जाओ, ये सवाल साफ़ हो जाएगा| तुम्हें कोई बेचैनी ही नहीं रहेगी| तुम ये पूछोगे ही नहीं कि मैं क्यों हूँ| जब तुम ये पूछते हो कि मैं क्यों हूँ, ठीक उसी समय मन शुरू हो जाता है|

मन का काम है सवालों में जीना| मन का काम है उलझन में जीवन| हर तरह की उलझन उसको बहुत पसंद हैं| जैसे ही तुम कहते हो कि मैं क्यों हूँ; मन को खिलौना मिल गया| अब वो इससे खेलेगा| मैं क्यों हूँ; मैं आत्मा हूँ; मैं मन हूँ; मैं शरीर हूँ; मैं पंचकोष हूँ और वो दुनिया भर की कल्पनाएँ खड़ी करेगा और जितनी कल्पनाएँ खड़ी कर रहा है मन अपने आप को और ताकतवर बना रहा है| वो उतना ही ज्यादा अपने अँधेरे में डूबता चला जा रहा है| तो इस प्रश्न का उत्तर नहीं है क्योंकि इस प्रश्न का जो भी उत्तर दिया जाएगा वो मन को जाएगा| मन पूछ रहा है कि ‘मैं हूँ ही क्यों’| वो इसीलिए है क्योंकि सवाल बहुत पूछता है| तू सवाल ना पूछ तो नहीं रहेगा | तूने पूछा सवाल और तू गया; तू सो जा| आ रही है बात समझ में?

तुम क्यों हो ये बात विचारणीय नहीं है;‘तुम हो’, ये बात ज़रूरी है| अपने होने को पहचानो और होने का अर्थ है, पूरी तरह होना, अपने स्वभाव को जानना| जब मैं कह रहा हूँ कि तुम हो तो इस बात को भी समझो| होने का अर्थ है सिर्फ वही है, सिर्फ वही अस्तित्वमान है जो स्वभाव में जी रहा है| और क्या है स्वभाव? स्वभाव है सच| स्वभाव है प्रेम|स्वभाव है मुक्ति| स्वभाव है आनंद| जो इनमें है सिर्फ वही है, वरना नहीं है| ‘मैं क्यों हूँ’ नहीं, ‘मैं हूँ’| मैं क्या हूँ? मैं प्रेम हूँ, मैं आनंद हूँ,मैं मुक्ति हूँ, मैं मुक्तिपूर्ण हूँ, मैं प्रेमपूर्ण हूँ, मैं आनंदपूर्ण हूँ और मैं जानता हूँ इसलिए सत्य हूँ| जो इनमें जीता है वो है बाकी नहीं हैं| बाकियों को बस लगता है कि वो हैं| बाकियों को बस एहसास होता है कि वो हैं| वो हैं नहीं| वो बस एक छाया है, एक कल्पना है, एक भ्रम है| वो जी ही नहीं रहे हैं, मशीन की तरह हैं| कोई कल्पना हो सकती है कि हम हैं, पर असल में हैं नहीं| जिसने प्रेम को नहीं जाना वो जी ही नहीं रहा| जो मुक्त नहीं है, वो जी नहीं रहा| जो सत्य में नहीं जी रहा, वो जी नहीं रहा| और जो मौज में नहीं जी रहा, आनंद में नहीं जी रहा, वो जी नहीं रहा| बस यही है तुम्हारा होना| होने पर ध्यान दो।

– ‘संवाद’ पर आधारित। स्पष्टता हेतु कुछ अंश प्रक्षिप्त हैं।

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